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सनातन हिंदू धर्म के नियम और सिद्धांत, जो हर हिन्दू को पता होना चाहिए……

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न्यूज डेस्क छत्तीसगढ़: भैरव की पूजा में तुलसी स्वीकार्य नहीं है। भोजन प्रसाद को लाघंना नहीं चाहिए। देव प्रतिमा देखकर अवश्य प्रणाम करें। किसी को भी कोई वस्तु या दान-दक्षिणा दाहिने हाथ से देना चाहिए। एकादशी,अमावस्या,कृृष्ण चतुर्दशी,पूर्णिमा व्रत तथा श्राद्ध के दिन क्षौर-कर्म (दाढ़ी) नहीं बनाना चाहिए। बिना यज्ञोपवित या शिखा बंधन के जो भी कार्य, कर्म किया जाता है, वह निष्फल हो जाता हैं। शंकर जी को बिल्वपत्र, विष्णु जी को तुलसी, गणेश जी को दूर्वा, लक्ष्मी जी को कमल प्रिय हैं शंकर जी को शिवरात्रि के सिवाय कुमकुम नहीं चढ़ते।शिवजी को कुंद, विष्णु जी को धतूरा,देवी जी को आक तथा मदार और सूर्य भगवानको तगर के फूल नहीं चढ़ावे। अक्षत देवताओं को तीन बार तथा पितरों को एक बार धोकर चढ़ावे एक हाथ से प्रणाम नही करना चाहिए।सोए हुए व्यक्ति का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए। बड़ों को प्रणाम करते समय उनके दाहिने पैर पर दाहिने हाथ से और उनके बांये पैर को बांये हाथ से छू कर प्रणाम करें।

जप करते समय जीभ या होंठ को नहीं हिलाना चाहिए। इसे उपांशु जप कहते हैं।इसका फल सौगुणा फलदायक होता हैं।जप करते समय दाहिने हाथ को कपड़े या गौमुखी से ढककर रखना चाहिए।जप के बाद आसन के नीचे की भूमि को स्पर्श कर नेत्रों से लगाना चाहिए। संक्रान्ति, द्वादशी, अमावस्या, पूर्णिमा, रविवार और सन्ध्या के समय तुलसी तोड़ना निषिद्ध हैं।दीपक से दीपक को नही जलाना चाहिए।यज्ञ,श्राद्ध आदि में काले तिल का प्रयोग करना चाहिए, सफेद तिल का नहीं।शनिवार को पीपल पर जल चढ़ाना चाहिए। पीपल की सात परिक्रमा करनी चाहिए।परिक्रमा करना श्रेष्ठ है।नये बिल्व पत्र नहीं मिले तो चढ़ाये हुए बिल्व पत्र धोकर फिर चढ़ाए जा सकते हैं।

विष्णु भगवान को चावल गणेश जी को तुलसी, दुर्गा जी और सूर्य नारायण को बिल्व पत्र नहीं चढ़ावें। पत्र-पुष्प-फल का मुख नीचे करके नहीं चढ़ावें, जैसे उत्पन्न होते हों वैसे ही चढ़ावें। बिल्वपत्र उलटा करके डंडी तोड़कर शंकर पर चढ़ावें।पान की डंडी का अग्रभाग तोड़कर चढ़ावें। सड़ा हुआ पान या पुष्प नहीं चढ़ावे। गणेश को तुलसी भाद्र शुक्ल चतुर्थी को चढ़ती हैं। पांच रात्रि तक कमल का फूल बासी नहीं होता है।दस रात्रि तक तुलसी पत्र बासी नहीं होते हैं।

सभी धार्मिक कार्यो में पत्नी को दाहिने भाग में बिठाकर धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न करनी चाहिए।पूजन करने वाला ललाट पर तिलक लगाकर ही पूजा करें। पूर्वाभिमुख बैठकर अपने बांयी ओर घंटा,धूप तथा दाहिनी ओर शंख, जलपात्र एवं पूजन सामग्री रखें। घी का दीपक अपने बांयी ओर तथा देवता को दाहिने ओर रखें एवं चांवल पर दीपक रखकर प्रज्वलित करें। गणेशजी को तुलसी का पत्र छोड़कर सब पत्र प्रिय हैं कुंद का पुष्प शिव को माघ महीने को छोड़कर निषेध है।

बिना स्नान किये जो तुलसी पत्र जो तोड़ता है उसे देवता स्वीकार नहीं करते।रविवार को दूर्वा नहीं तोड़नी चाहिए।केतकी पुष्प शिव को नहीं चढ़ाना चाहिए।केतकी पुष्प से कार्तिक माह में विष्णु की पूजा अवश्य करें।देवताओं के सामने प्रज्जवलित दीप को बुझाना नहीं चाहिए।

शालिग्राम का आवाह्न तथा विसर्जन नहीं होता। जो मूर्ति स्थापित हो उसमें आवाहन और विसर्जन नहीं होता। तुलसीपत्र को मध्यान्ह के बाद ग्रहण न करें। पूजा करते समय यदि गुरुदेव,ज्येष्ठ व्यक्ति या पूज्य व्यक्ति आ जाए तो उनको उठ कर प्रणाम कर उनकी आज्ञा से शेष कर्म को समाप्त करें।

मिट्टी की मूर्ति का आवाहन और विसर्जन होता है और अंत में शास्त्रीयविधि से गंगा प्रवाह भी किया जाता है।कमल को पांच रात,बिल्वपत्र को दस रात और तुलसी को ग्यारह रात बाद शुद्ध करके पूजन के कार्य में लिया जा सकता है। पंचामृत में यदि सब वस्तु प्राप्त न हो सके तो केवल गाय के दुग्ध से स्नान कराने मात्र से पंचामृतजन्य फल जाता है।

शालिग्राम पर अक्षत नहीं चढ़ता। लाल रंग मिश्रित चावल चढ़ाया जा सकता है। हाथ में धारण किये पुष्प, तांबे के पात्र में चन्दन और चर्म पात्र में गंगाजल अपवित्र हो जाते हैं। पिघला हुआ घी और पतला चन्दन नहीं चढ़ाना चाहिए। प्रतिदिन की पूजा में सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य चढ़ाएं।

आसन, शयन, दान, भोजन, वस्त्र, संग्रह, विवाद और विवाह के समयों पर छींक शुभ मानी गई है।

जो मलिन वस्त्र पहनकर,मूषक आदि के काटे वस्त्र, केशादि बाल कर्तन युक्त और मुख दुर्गन्ध युक्त हो,जप आदि करता है उसे देवता नाश कर देते हैं।

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