
हिरमी- -रावन: ग्रामीण अंचल हिरमी,मोहरा,बरडीह, सकलोर परसवानी, भटभेरा,भालेसूर, तिल्दाबांधा की माताएं अपनी संतान की दीर्घायु के लिए इस व्रत को करती हैं और गणेशजी की पूजा करती हैं। इस दिन गणेशजी की पूजा की जाती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद महिलाएं पानी पीकर व्रत तोड़ती हैं। इस संकष्टी चतुर्थी को सकट चौथ, संकटाचौथ, संकष्टी चतुर्थी, तिलकुट चतुर्थी और तिलकुट चौथ के नाम से भी जाना जाता है।हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाता है। इसमें भगवान गणेश की विशेष पूजा-पाठ की और रात को चंद्रोदय होने के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर उसकी पूजा किया। इसके बाद व्रत का पारण किया । चंद्रमा दर्शन और पूजन के बाद ही सकंष्टी चतुर्थी का व्रत पूर्ण माना जाता है। यही कारण है कि इस व्रत को करने वाली व्रती चंद्रमा के उदित होने की प्रतीक्षा करती रही। संकष्टी चतुर्थी का व्रत महिलाएं संतान की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए रखी। साथ ही इस व्रत को करने से भगवान गणेश की कृपा से घर पर सुख-समृद्धि बनी रहती है।दिलेश्वर मढ़रिया ने बताया कि संकष्टी चतुर्थी पर एक तरफ जहां चंद्र दर्शन और पूजन का काफी महत्व होता है। वहीं विनायक चतुर्थी पर चंद्र दर्शन पर पूरी तरह से मनाही होती है। कुछ लोग हर माह शुक्ल पक्ष की विनायक चतुर्थी को चंद्र दर्शन नहीं करते। लेकिन मान्यता है कि खासकर भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन नहीं करना चाहिए। इस दिन चंद्र दर्शन करने से इंसान पर झूठे आरोप या कलंक लगते हैं। इस पीछे एक पौराणिक मान्यता है जोकि इस प्रकार से है। कहा जाता है कि, भगवान श्रीकृष्ण ने भी इसी चतुर्थी के दिन चंद्रदर्शन किया था, जिसके कारण उनपर मणिचोरी का झूठा आरोप लगा था। इसलिए भाद्रपद के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी को ‘कलंक चतुर्थी’ भी कहा जाता है और चंद्र दर्शन निषेध माना जाता है।





