न्यूज डेस्क छत्तीसगढ़: हिंदू धर्म में भोजन से संबंधित कई परंपराएँ और अनुष्ठान हैं जो आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और स्वास्थ्य से जुड़े होते हैं।
थाली के पास जल डालना तथा थाली के बाहर अन्न का एक निवाला रखने का उद्देश्य देवता, ऋषि, पूर्वज तथा समाज का ऋण चुकाना है। प्रत्येक व्यक्ति को यह ऋण चुकाना होता है।
इस प्रक्रिया के अंतर्गत कुछ लोग थाली के पास जल डालते हैं, तो कुछ लोग थाली के बाहर दाहिनी ओर अन्न का एक अथवा पांच निवाला रखते हैं।
थाली के पास जल डालने का उद्देश्य :-
- पवित्रता का प्रतीक : थाली के पास जल डालने से भोजन के आसपास की जगह को पवित्र माना जाता है। जल को हिंदू धर्म में पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक माना जाता है।
- देवताओं का आह्वान : भोजन के पास जल डालने से इसे देवताओं को अर्पित किया जाता है और उनकी कृपा प्राप्त की जाती है। इसे एक तरह से देवताओं को भोजन का आमंत्रण माना जाता है।
- स्वास्थ्य संबंधी कारण : भोजन के पास जल डालने से यह सुनिश्चित किया जाता है कि भोजन का सेवन करने से पहले जल ग्रहण किया जाए, जो पाचन के लिए लाभदायक होता है।
थाली के बाहर अन्न का एक निवाला रखने का उद्देश्य :-
- सर्वभूत हिताय : हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि भोजन ग्रहण करने से पहले इसे सभी जीवों के लिए अर्पित करना चाहिए। थाली के बाहर अन्न का एक निवाला रखने से यह भाव प्रकट होता है कि हम अपने भोजन का एक अंश सभी जीवों के लिए समर्पित कर रहे हैं।
- पितृ तर्पण : यह निवाला पितरों (पूर्वजों) के तर्पण के लिए होता है। यह विश्वास है कि हमारे पूर्वज इस अन्न से तृप्त होते हैं और हमें आशीर्वाद देते हैं।
- भूत और प्रेत योनि के लिए : यह निवाला उन आत्माओं के लिए भी होता है जिन्हें मुक्ति नहीं मिली है। इसे उन्हें शांत करने के लिए अर्पित किया जाता है।
- कृतज्ञता का प्रतीक : यह निवाला प्रकृति, पशु-पक्षी, और समस्त जीवों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का एक तरीका है। यह हमारे भोजन का एक अंश उनके लिए समर्पित करता है।
- अन्न का महत्व : यह निवाला यह भी सिखाता है कि अन्न का आदर करना चाहिए और इसे व्यर्थ नहीं करना चाहिए। अन्न देवता की पूजा करने का यह एक प्रतीकात्मक तरीका है।
थाली के पास जल डालने और थाली के बाहर अन्न का एक निवाला रखने की परंपरा गहरे धार्मिक, सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों से जुड़ी है। यह हमें अपने पूर्वजों, देवताओं, प्रकृति और सभी जीवों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता प्रकट करने की शिक्षा देती है।
इन अनुष्ठानों का पालन करने से व्यक्ति न केवल आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में आगे बढ़ता है, बल्कि उसे अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का भी बोध होता है।