
सावंदादता अंशु सोनी : उच्च स्तरीय जांच की मांग छत्तीसगढ़ की पहचान उसके घने जंगल और जैव–विविधता से है। लेकिन विकास के नाम पर यह धरोहर तेजी से उजड़ रही है। बिलासपुर से पेंड्रा रोड के बीच भंनवारटंक से खोडरी तक फैले जंगलों की अंधाधुंध कटाई ने अब पर्यावरण और वन्यजीव दोनों को संकट में डाल दिया है। जंगल उजड़े, आवास नष्टरेलवे की डबल और तीसरी लाइन बिछाने के लिए तय सीमा से अधिक पेड़ काट दिए गए। पोकलेन और जेसीबी जैसी भारी मशीनों ने जंगल को तहस–नहस कर दिया। नतीजा— न सिर्फ पेड़, बल्कि छोटे पौधे, झाड़ियाँ और वन्यजीवों का प्राकृतिक घर भी उजड़ गया। गांवों की ओर बढ़ रहे वन्यजीवस्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि तेंदुआ, चीतल, भालू और जंगली सूअर अब गांवों के आसपास दिखाई देने लगे हैं। रेल लाइन पर हिरन और तेंदुए की मौत के मामले पहले ही सामने आ चुके हैं। इससे मानव–वन्यजीव संघर्ष की आशंका बढ़ गई है। ट्रेन से दिखता है विनाशयात्री बताते हैं कि ट्रेन से सफ़र के दौरान साफ दिखता है कि किस पैमाने पर जंगल और पहाड़ों को काटा जा रहा है। जबकि सड़क मार्ग से यह दृश्य नज़र नहीं आता, इसलिए वास्तविकता छिपी रह जाती है।
सवालों के घेरे में विभाग. इतने बड़े पैमाने पर कटे पेड़ गए कहाँ? वन विभाग और पर्यावरण विभाग चुप क्यों हैं? क्या रेलवे और ठेकेदार गाइडलाइंस का पालन कर रहे हैं? राजस्व और खनिज विभाग अपनी जिम्मेदारी क्यों नहीं निभा रहे? सामाजिक कार्यकर्ता की पहल सामाजिक कार्यकर्ता प्रदीप शर्मा ने इस मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है।
उन्होंने कहा—“जंगल काटने से न सिर्फ पेड़ और पौधे उजड़े हैं, बल्कि वन्यजीवों का पूरा रहवास खतरे में है। यह विकास नहीं, बल्कि विनाश है। रेलवे को तय सीमा और गाइडलाइंस के भीतर ही काम करना होगा।”उन्होंने इसकी शिकायत PMO और पर्यावरण मंत्रालय से की है और चेतावनी दी है कि सुनवाई नहीं होने पर जनहित याचिका दायर की जाएगी।
भविष्य के खतरे वर्षा में कमी नदियों का सूखना मिट्टी का कटाव जलवायु असंतुलन वन्यजीव–मानव संघर्ष प्राकृतिक आपदाओं का बढ़ता खतरा निष्कर्षस्थानीय लोग और सामाजिक संगठन मांग कर रहे हैं कि रेलवे प्रोजेक्ट को गाइडलाइंस के भीतर सीमित किया जाए और इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच तुरंत शुरू की जाए।







