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वेद क्या हैं? वेद शब्द का अर्थ “ज्ञान” है,जानिए चारों वेदों की संपूर्ण जानकारी और महत्व

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चारों वेदों की संपूर्ण जानकारी और महत्व

न्यूज डेस्क छत्तीसगढ़: वेद क्या हैं?
वेद शब्द का अर्थ “ज्ञान” है। वेद हमारे धार्मिक ग्रंथ तो हैं ही उसके साथ-साथ हिंदूधर्म के धर्म को सूचित करते हैं। वेद ही हिन्दू धर्म के सर्वोच्च और सर्वोपरि धर्मग्रंथ है। वेद दुनिया के सभी ग्रंथो में से सबसे पुराने धर्मग्रन्थ माना जाते है। वेद मानव सभ्यता के लगभग सबसे पुरानी और पहले लिखित दस्तावेज है।

वेद सनातन धर्म और विश्व का प्राचीनतम ग्रंथ है। वेद पूर्णता ऋषिओ द्वारा सुने गए ज्ञान पर आधारित है, इसीलिए इसे श्रुति कहा जाता है। वेद संस्कृत के शब्द से निर्मित है, जिसका अर्थ ज्ञान होता है। यह प्राचीनतम ज्ञान विज्ञान का अथाह भंडार है। वेद में मनुष्य के हर समस्या का समाधान मिलता है।

हिंदू धर्म को सूचित करने वाले चार वेद जो निम्नलिखित है।
ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद

1) ऋग्वेद:-
ऋक अर्थात स्थिति। वेदो में सबसे पहला वेद ऋग्वेद हे, जो पद्यात्मक है। ऋग्वेद में 10 मंडल, 1028 सूक्त और इसमें 11 हजार श्लोक हैं। ऋग्वेद में शाकल्प, वास्कल, अश्वलायन, शांखायन, मंडूकायन 5 शाखाएं हैं। इस वेद में देवताओ के आवाहन के मंत्रों और भौगोलिक स्थिति के साथ बहोत कुछ है।

ऋग्वेद की विशेषताएँ
▪️ यह वेद का सबसे पुराना रूप और सबसे पुराना ज्ञात वैदिक संस्कृत पाठ (1800 – 1100 ईसा पूर्व) है।
▪️ ‘ऋग्वेद’ शब्द का अर्थ स्तुति ज्ञान है
▪️ इसमें 10600 छंद हैं।
▪️ 10 किताबों या मंडलों में से, किताबें नंबर 1 और 10 सबसे कम उम्र की हैं, जैसा कि बाद में किताबों 2 से 9 तक लिखा गया था।
▪️ ऋग्वैदिक पुस्तकें 2-9 ब्रह्मांड विज्ञान और देवताओं से संबंधित हैं।
▪️ ऋग्वैदिक पुस्तकें 1 और 10 दार्शनिक सवालों से निपटती हैं और समाज में दान सहित विभिन्न गुणों के बारे में बात करती हैं।
▪️ ऋग्वैदिक पुस्तकें 2-7 सबसे पुरानी और सबसे छोटी हैं जिन्हें पारिवारिक पुस्तकें भी कहा जाता है।
▪️ ऋग्वैदिक पुस्तकें 1 और 10 सबसे छोटी और सबसे लंबी हैं।
▪️ 1028 भजन अग्नि, इंद्र सहित देवताओं से संबंधित हैं और एक ऋषि ऋषि को समर्पित और समर्पित हैं।
▪️ नौवीं ऋग्वैदिक पुस्तक / मंडला पूरी तरह से सोमा को समर्पित है।
भजनों को बनाने के लिए उपयोग किए जाने वाले मीटरों में गायत्री, अनुशुभुत, त्रिशबत और जगती हैं।

2) यजुर्वेद:-
यजुर्वेद चार वेदों में से एक महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ है। यजुर्वेद का अर्थ यजुष् के नाम पर ही वेद का नाम यजुष्+वेद = यजुर्वेद शब्दों की संधि से बना है। यज् का अर्थ समर्पण से होता है। यजुर्वेद में यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिए गद्य और पद्य मन्त्र है। यजुर्वेद अधिकांशतः यज्ञों के नियम और और विधान हैं, अतः इसलिए यह वेद कर्मकाण्ड प्रधान भी कहा जाता है। यजुर्वेद वेद दो शाखाओ में बटा हुआ हैं शुक्ल और कृष्ण।

यजुर्वेद की विशेषताएँ
▪️ इसके दो प्रकार हैं – कृष्ण (काला) और शुक्ल (श्वेत / उज्ज्वल)।
▪️ कृष्ण यजुर्वेद में छंदों का एक व्यवस्थित, अस्पष्ट, प्रेरक संग्रह है।
▪️ शुक्ल यजुर्वेद ने छंदों को व्यवस्थित और स्पष्ट किया है।
▪️ यजुर्वेद की सबसे पुरानी परत में 1875 श्लोक हैं जो ज्यादातर ऋग्वेद से लिए गए हैं।
▪️ वेद की मध्य परत में शतपथ ब्राह्मण है जो शुक्ल यजुर्वेद का भाष्य है।
▪️यजुर्वेद की सबसे छोटी परत में विभिन्न उपनिषद हैं – बृहदारण्यक उपनिषद, ईशा उपनिषद, तैत्तिरीय उपनिषद, कथा उपनिषद, श्वेताश्वतर उपनिषद और मैत्री उपनिषद।
▪️ वाजसनेयी संहिता शुक्ल यजुर्वेद में संहिता है।
▪️ कृष्ण यजुर्वेद के चार जीवित शब्द हैं – तैत्तिरीय संहिता, मैत्रायणी संहिता, कौह संहिता, और कपिस्ताला संहिता।

3) सामवेद:-
सामवेद गीत-संगीत का मुख्य वेद है। प्राचीन आर्यों द्वारा सामवेद का गान किया जाता था। सामवेद में 1875 श्लोक है, इसमे से 1504 ऋगवेद से लिए गए हैं। इस वेद में 75 ऋचाएं, 3 शाखाओ में सविता, अग्नि और इंद्र आदि देवी देवताओं के बारे में वर्णन मिलता है। सामवेद चारो वेदो में छोटा है, परंतु यह चारो वेदो का सर रूप है, और चारो वेदो के अंश इसमें शामिल किये गए है।

सामवेद की विशेषताएँ
▪️ इसमें 1549 छंद हैं (75 छंदों को छोड़कर, सभी ऋग्वेद से लिए गए हैं)।
▪️ सामवेद में दो उपनिषद निर्धारित हैं – चंडोग्य उपनिषद और केना उपनिषद।
▪️ सामवेद को भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य का मूल माना जाता है।
▪️ इसे संगीत मंत्रों का भंडार माना जाता है।
▪️ यद्यपि इसमें ऋग्वेद की तुलना में कम छंद हैं, हालांकि, इसके ग्रंथ बड़े हैं।
▪️ सामवेद के पाठ की तीन पुनरावृत्तियाँ हैं – कौथुमा, रौयण्य, और जयमानिया।
▪️ सामवेद को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है – भाग- I में गण नामक धुनें शामिल हैं और भाग- II में आर्चिका नामक तीन छंदों वाली पुस्तक शामिल है।
▪️ सामवेद संहिता का अर्थ पाठ के रूप में पढ़ा जाना नहीं है, यह एक संगीत स्कोर शीट की तरह है जिसे अवश्य सुना जाना चाहिए।

4) अथर्ववेद:-
सनातन धर्म के पवित्रतम चार वेदो में से चौथा वेद अथर्वेद है। महर्षि अंगिरा रचित अथर्वेद में 20 अध्याय, 730 सूक्त, 5687 श्लोक और 8 खण्ड है, जिसमे देवताओं की स्तुति के साथ, चिकित्सा, आयुर्वेद, रहस्यमयी विद्याओं, विज्ञान आदि मिलते हैं। अथर्वेद में ब्रह्माजी की सर्वत्र चर्चा होने कारण इस वेद को ब्रह्मवेद भी कहा जाता है।

अथर्ववेद की विशेषताएँ
▪️ इस वेद में जीवन की दैनिक प्रक्रियाओं को बहुत अच्छी तरह से जाना जाता है।
▪️ इसमें 730 भजन / सूक्त, 6000 मंत्र और 20 पुस्तकें हैं।
▪️ पयप्पलदा और सौनकिया अथर्ववेद के दो जीवित पाठ हैं।
▪️ जादुई सूत्रों का एक वेद कहा जाता है, इसमें तीन प्राइमरी शामिल हैं।  उपनिषद – मुंडका उपनिषद, मंडूक उपनिषद, और उपनिषद
▪️ 20 पुस्तकों की व्यवस्था उनके भजन की लंबाई से होती है।
▪️ सामवेद के विपरीत जहां ऋग्वेद से भजन उधार लिए गए हैं, अथर्ववेद के भजन कुछ को छोड़कर अद्वितीय हैं।
▪️ इस वेद में कई भजन हैं, जिनमें जादू के मंत्र हैं, जो उस व्यक्ति द्वारा उच्चारित किए जाते हैं जो कुछ लाभ चाहते हैं, या अधिक बार एक जादूगर द्वारा जो इसे अपनी ओर से कहेंगे।

वेदों के उपवेद:-
ऋग्वेद का आयुर्वेद,
यजुर्वेद का धनुर्वेद,
सामवेद का गंधर्ववेद
अथर्ववेद का स्थापत्यवेद

यह चारों वेदों के उपवेद बतलाए गए हैं।

वेद के चार विभाग है: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद।

ऋग-स्थिति, यजु-रूपांतरण, साम-गति‍शील और अथर्व-जड़। ऋक को धर्म, यजुः को मोक्ष, साम को काम, अथर्व को अर्थ भी कहा जाता है। इन्ही के आधार पर धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्षशास्त्र की रचना हुई है।

वेदों का इतिहास:-
मानव सभ्यता के सबसे पुराने लिखित दस्तावेज वेद को ही माना जाता है। भारत के पुणे में भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट’ में वेदों की 28 हजार पांडुलिपियाँ रखी हुई हैं। इस पांडुलिपि में 30 पांडुलिपियाँ ऋग्वेद की बहुत ही महत्वपूर्ण जिन्हें यूनेस्को ने विरासत सूची में शामिल किया गया है।

यूनेस्को द्वारा ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया गया है। यूनेस्को की महत्वपूर्ण 158 सूची में भारत की महत्वपूर्ण की सूची 38 है।

ब्रह्माजी द्वारा वेदो का ज्ञान सर्वप्रथम चार ऋषिओ अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य को सुनाया गया था। वेद ही वैदिककाल परंपरा की सर्वोत्तम कृति है। यह पिछले छह-सात हजार ईस्वी पूर्व से पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है। संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद के संयोग को विद्वानों ने वेद कहा है।

विद्वानों के अनुसार वेदो का रचनाकाल 4500 ई.पु. से माना जाता है। वेद धीरे-धीरे रचे गए और पहले तीन वेद संकलित किये गये थे ऋग्वेद यजुर्वेद और सामवेद इसे वेदत्रीय भी कहा जाता है। फिर अथर्वा ऋषि द्वारा अथर्ववेद की रचना की गई है।

वेदों का महत्व:-
वेद सनातन धर्म के मूलाधार है। वेद ही तो एकमात्र ऐसा ग्रंथ है, जो आर्यों की संस्कृति और सभ्यता की पहचान करवाते है। मनुष्य ने अपने शैशव में धर्म और समाज का विकास किया इसका ज्ञान केवल वेदों में ही मिलता है। वेदों से मनुष्य जाती को जीवन जीने की विभिन्न जानकारियां मिलती हैं। इनमे से कुछ प्रमुख जानकारियां निम्नलिखित है।

वेदो में वर्ण एवं आश्रम पद्धतियां की जानकारी के साथ-साथ रीति रिवाज एवं परंपराओं का वर्णन और विभिन्न व्यवसाय के बारे में वर्णन किया गया है।

वेदो में वर्ण एवं आश्रम पद्धतियां की जानकारी के साथ-साथ रीति रिवाज एवं परंपराओं का वर्णन और विभिन्न व्यवसाय के बारे में वर्णन किया गया है।

महर्षि अत्रि कहते हैं की-
नास्ति वेदात् परं शास्त्रम्।
अर्थात: वेद से बढ़कर कोई शास्त्र नहीं है।

और

महर्षि याज्ञवल्क्य कहते हैं की
यज्ञानां तपसाञ्चैव शुभानां चैव कर्मणाम् ।
वेद एव द्विजातीनां निःश्रेयसकरः परः ।।

अर्थात: यज्ञ के विषय में, तप के सम्बन्ध में और शुभ-कर्मों के ज्ञानार्थ द्विजों के लिए वेद ही परम कल्याण का साधन है।

प्राचीन काल से वेदों के अध्ययन और व्याख्या की परम्परा भारत में रही है। विद्वानों के अनुसार आर्षयुग में परमपिता ब्रह्मा, जैमिनि ऋषि और आदि ऋषि-मुनियों ने शब्द प्रमाण के रूप में वेद को माना हैं, और वेद के आधार पर अपने ग्रन्थों का निर्माण भी किया हैं।

जैमिनि ऋषि, पराशर ऋषि, कात्यायन ऋषि, याज्ञवल्क्य ऋषि, व्यास ऋषि, आदि को प्राचीन काल के वेद वक्ता कहते हैं।

वेदों का सार:-
वेदों में ब्रह्म (ईश्वर), देवता, ब्रह्मांड, ज्योतिष, गणित, रसायन, औषधि, प्रकृति, खगोल, भूगोल, धार्मिक नियम, इतिहास रीति-रिवाज आदि, लगभग सभी विषयों से संबंधित ज्ञान भरा पड़ा है।

एक ग्रंथ के अनुसार ब्रह्मा जी के चारों मुख से वेदों की उत्पत्ति हुई। वेद सबसे प्राचीनतम पुस्तक है। इसीलिए किसी व्यक्ति या स्थान का नाम वेदों पर से रखा जाना स्वाभाविक है।
जैसे आज भी रामायण, महाभारत इत्यादि से आये शब्दों से मनुष्य और स्थान आदि का नामकरण किया जाता है। वेद मानव सभ्यता के लगभग सबसे पुरानी लिखित दस्तावेज है।

इस संसार के सबसे प्राचीन धर्मग्रंथ वेद ही है। वेद की वाणी ही ईश्वर की वाणी है। वेद हमारी भारतीय संस्कृति की रीढ़ हैं इनमें अनिष्ट से संबंधित उपाय तथा जो इच्छा हो उसके अनुसार उसे प्राप्त करने के उपाय संग्रहित है लेकिन जिसप्रकार किसी भी कार्य में मेहनत लगती है उसी प्रकार इन रत्न रूपी वेदों का श्रम पूर्वक अध्ययन करके ही इनमें संकलित ज्ञान को मनुष्य प्राप्त कर सकता है।

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