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भक्तिमय माहौल में संपन्न हुई श्रीमद्भागवत कथा: सुदामा चरित्र सुन भावुक हुए श्रद्धालु

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सच्चा सुख महलों में नहीं, बल्कि संतोष और प्रेम में है। :- अनन्या शर्मा

हिरमी – रावन: ग्राम सकलोर में आयोजित सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद्भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ सप्ताह का समापन आज भव्यता और श्रद्धा के साथ हुआ। कथा के अंतिम दिन सुदामा चरित्र के प्रसंग ने भक्तों को भाव-विभोर कर दिया। अखिल ब्रह्मांड नायक लीला पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्णचंद्र जी की असीम कृपा से, आयोजक दिलीप वर्मा, सुधीर वर्मा, कमल वर्मा एवं वेदप्रकाश वर्मा द्वारा अपने पूज्य पिताजी स्व. श्री अयोध्या प्रसाद वर्मा एवं माताजी स्व. श्रीमती सुरूज बाई वर्मा की पावन स्मृति में इस पुण्य कार्य का आयोजन किया गया। निस्वार्थ मित्रता का संदेश कथा के विश्राम दिवस पर राष्ट्रीय कथा वाचिका, परमपूज्यनीय बालविदुषी सुश्री अनन्या शर्मा जी ने सुदामा चरित्र का मर्मस्पर्शी वर्णन किया। सुश्री अनन्या शर्मा जी ने श्रीमद्भागवत कथा के दौरान भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता का जो प्रसंग सुनाया, वह केवल दो मित्रों की कहानी नहीं है, बल्कि ‘भक्त और भगवान’ के निस्वार्थ प्रेम का सर्वोच्च उदाहरण है कृष्ण ने सुदामा को गले लगाया और उनके पैरों में चुभे कांटे निकाले।

अनन्या जी यहाँ प्रसिद्ध पंक्तियों का उल्लेख करती हैं— “पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सो पग धोये।” अर्थात् भगवान ने परात के पानी की जगह अपने आंसुओं से मित्र के पैर धोए। सुदामा ने कृष्ण से कुछ नहीं मांगा और खाली हाथ अपने गाँव वापस लौट आए। वे मन ही मन सोच रहे थे कि घर जाकर सुशीला को क्या जवाब देंगे। लेकिन जब वे अपनी कुटिया के पास पहुँचे, तो वहाँ फटी झोपड़ी की जगह स्वर्ण का महल खड़ा था। उनकी पत्नी दिव्य आभूषणों से सजी हुई थी। सुदामा समझ गए कि उनके मौन को उनके मित्र कृष्ण ने सुन लिया है।अनन्या जी ने इस कथा के माध्यम से श्रोताओं को यह संदेश दिया कि मित्रता में पद और प्रतिष्ठा का कोई स्थान नहीं होता। ईश्वर से कुछ मांगने की आवश्यकता नहीं है, वे बिन मांगे ही भक्त की व्यथा समझ लेते हैं। सच्चा सुख महलों में नहीं, बल्कि संतोष और प्रेम में है। उन्होंने कहा कि “भगवान और मित्र के बीच स्वार्थ या छल का कोई स्थान नहीं होता। यदि भक्त केवल प्रेम लेकर ईश्वर के पास जाता है, तो भगवान उसे वह सब कुछ प्रदान कर देते हैं जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की होती।”सुदामा और कृष्ण के मिलन के मार्मिक प्रसंग को सुनकर पांडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं की आंखें नम हो गईं और पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया। दिलेश्वर मढरिया ने बताया कि यज्ञ की पूर्णाहुति और विशाल भंडारा सात दिनों तक चली इस अमृतमयी कथा के समापन पर विधि-विधान से गीता पाठ और तुलसी वर्षा की गई। “स्वाहा-स्वाहा” के मंत्रोच्चार के साथ हवन-पूजन कर कथा की पूर्णाहुति हुई। सुदामा चरित्र के दौरान भक्तों का मंत्रमुग्ध होकर अश्रुपूर्ण नेत्रों से श्रवण किया। पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ महायज्ञ का समापन। कथा के पश्चात विशाल भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें क्षेत्र के हजारों श्रद्धालुओं ने महाप्रसाद ग्रहण किया। आयोजक परिवार ने इस सफल आयोजन के लिए सभी ग्रामवासियों और सहयोगियों का आभार व्यक्त किया।

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