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BALODABAZAR: ऑनलाइन टोकन से जूझते किसान, सरकारी व्यवस्था पर सवाल!

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हिरमी – रावन : छत्तीसगढ़ में समर्थन मूल्य पर धान खरीदी की प्रक्रिया भले ही सरकार की प्राथमिकता हो, लेकिन ऑनलाइन टोकन सिस्टम (जैसे ‘टोकन तुंहर हाथ’ ऐप) किसानों के लिए सुविधा कम, परेशानी का सबब ज्यादा बन गया है। किसान जिस तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं, वह सरकारी दावों और जमीनी हकीकत के बीच बड़ा अंतर दिखाती है। तकनीकी खराबी या सिस्टम की कमी? किसानों की सबसे बड़ी शिकायत ऑनलाइन टोकन को लेकर है। किसान दिलेश्वर मढरिया बताते हैं कि: शुरुआत में टोकन की उपलब्धता (जैसे 300-400 क्विंटल से ऊपर ) दिखती है, लेकिन जैसे ही किसान उसे चुनने और ‘ओके’ करने की कोशिश करते हैं, सर्वर धीमा हो जाता है, गोल-गोल घूमता रहता है। लंबी प्रतीक्षा के बाद पता चलता है कि टोकन कट गया है, लेकिन किसान टोकन प्राप्त नहीं कर पाया। दरअसल, कुछ ही मिनटों (अक्सर 10-15 मिनट) में सभी केंद्रों के टोकन समाप्त हो जाते हैं। यह स्थिति साफ तौर पर या तो सर्वर की कम क्षमता या फिर टोकन वितरण प्रणाली में पारदर्शिता की कमी को दर्शाती है। *किसानों की पीड़ा*किसान इस पूरी प्रक्रिया से अत्यधिक परेशान हैं। समय की बर्बादी: टोकन कटवाने के लिए उन्हें बार-बार खरीदी केंद्रों के चक्कर लगाने पड़ते हैं, या घंटों मोबाइल ऐप पर लगे रहना पड़ता है, जिससे उनके खेती के जरूरी काम प्रभावित होते हैं। धान बेचने की अनिश्चितता: टोकन न मिलने से किसान अपनी उपज समय पर नहीं बेच पा रहे हैं, जिससे उन्हें अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए पैसों की तंगी का सामना करना पड़ रहा है।सरकार पर अविश्वास: सरकार ने किसानों को लंबी लाइनों से मुक्ति दिलाने के लिए ऐप लॉन्च किया था, लेकिन इसके ठीक से काम न करने पर किसान खुद को छला हुआ महसूस कर रहे हैं और सरकार के वादों पर सवाल उठा रहे हैं। सरकार का पक्ष और वैकल्पिक व्यवस्था सरकार ने किसानों को सुविधा देने के लिए ‘टोकन तुंहर हाथ’ जैसे मोबाइल ऐप लॉन्च किए हैं, और इसके साथ ही खरीदी केंद्र पर मैनुअल (ऑफलाइन) टोकन की व्यवस्था भी रखी है। साथ ही, कुछ जगहों पर किसानों की पहचान सुनिश्चित करने और बिचौलियों को रोकने के लिए आधार-आधारित OTP ऑथेंटिकेशन और यहां तक कि सेल्फी अपलोड जैसे नए नियम भी लागू किए गए हैं। हालांकि, किसानों का कहना है कि मैनुअल टोकन भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं और ऑनलाइन सिस्टम की समस्याओं के कारण उन्हें मायूस होकर लौटना पड़ता है। दिलेश्वर मढरिया का कहना है कि सरकार को चाहिए कि वह किसानों की इस गंभीर समस्या को तत्काल संज्ञान में ले। सर्वर की क्षमता बढ़ाई जाए, तकनीकी खामियों को दूर किया जाए और टोकन वितरण प्रणाली में ऐसी पारदर्शिता लाई जाए जिससे हर किसान को उसकी बारी का टोकन मिलना सुनिश्चित हो सके। किसानों की तकलीफ सरकार की नजरों से ओझल नहीं होनी चाहिए।

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