
हिरमी: अगहन (मार्गशीर्ष) मास के पावन अवसर पर, तीसरा गुरुवार को माँ लक्ष्मी के आगमन की मंगल कामना के साथ महिलाओं ने पारंपरिक गुरुवारी व्रत-उपवास किया। सुबह से ही घरों में उत्सव का माहौल रहा और दिन भर चली विशेष पूजा-अर्चना के बाद शाम को आरती के साथ प्रसाद वितरण किया गया। चावल के आटे की रंगोली और विशेष सज्जा माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए व्रती महिलाओं ने घरों के आंगन और पूजा स्थल को धान की बालियों, आम के पत्तों और तरह-तरह के मौसमी फलों से सजाया। मुख्य द्वार से लेकर पूजा स्थल तक चावल के आटे (अरिपन) से सुंदर और पारंपरिक रंगोलियाँ उकेरी गईं, जिन्हें देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो साक्षात धन की देवी घर में प्रवेश कर रही हों। दिन भर चला पूजा-पाठ और कथा श्रवण महिलाओं ने दिन भर उपवास रखकर विधिवत माँ महालक्ष्मी की पूजा की। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अगहन मास में माँ लक्ष्मी पृथ्वी लोक पर विचरण करने आती हैं। इसी भावना के साथ व्रतियों ने पूरे समर्पण से पूजा की।सुबह: स्नान के बाद कलश स्थापना और दीप प्रज्वलन किया गया। दोपहर/शाम: विधि-विधान से महालक्ष्मी की व्रत कथा का श्रवण किया गया। इस दौरान सुख-समृद्धि और परिवार के कल्याण की कामना की गई। शाम को महाआरती और प्रसाद वितरण दिन भर की साधना के बाद, शाम होते ही घरों में भव्य महाआरती का आयोजन किया गया। शंख और घंटियों की मधुर ध्वनि से वातावरण भक्तिमय हो उठा। आरती के बाद घरों में बने विभिन्न प्रकार के पारंपरिक पकवानों का भोग माँ लक्ष्मी को अर्पित किया गया।तत्पश्चात, आस-पड़ोस की महिलाओं और संबंधियों को विशेष रूप से आमंत्रित कर प्रसाद (प्रसादी) वितरित की गई। इस दौरान सभी ने एक-दूसरे को अगहन गुरुवार की शुभकामनाएँ दीं।मान्यता: ऐसी मान्यता है कि अगहन माह के प्रत्येक गुरुवार को अलग-अलग प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाने से माँ लक्ष्मी का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे घर में धन-धान्य और सुख-समृद्धि बनी रहती है।यह पारंपरिक पर्व परिवार और समाज के बीच जुड़ाव और समृद्धि का संदेश देते हुए संपन्न हुआ.






