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अंचल में रही पोरा पर्व की धूम, ग्रामीण अंचलों में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया पोरा पर्व

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हिरमी – रावन : छत्तीसगढ़ का पारम्परिक पर्व पोला ग्रामीण अंचल हिरमी, मोहरा, सकलोर, कुथरौद, परसवानी, तिल्दाबाँधा, भालेसुर, बरडीह, भिलौनी में हर्षोल्लास से मनाया गया। गांवों में रीति-रिवाज से देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना कर सुख-शांति एवं समृद्घि की मंगल कामना की गई। साथ ही अपनी आस्था प्रकट की गई। त्योहार में नंदिया बैल व पोरा-जाता की पूजा-अर्चना बाद बच्चे इसे लेकर खेल में मग्न हो गए।छत्तीसगढ़ का लोक पारंपरिक त्योहार पोला क्षेत्र में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। लोगों ने विधि विधान से नंदिया बईला की पूजा अर्चना की। बच्चों ने मिट्टी से बने विभिन्न खेल समानो का आनंद लिया। लोक पर्व पोला कृषि संस्कृति से जुड़ा हुआ है। इसके माध्यम से किसानों के साथी बैल की पूजा के साथ मवेशियों के सम्मान का संदेश है। लोगों ने पारंपरिक मिठाइयां तथा पकवानो से अपने ईष्टदेव का भोग लगाया। मिट्टी से बने नंदिया बईला तथा पोरा व अन्य खेल सामानों का बच्चों ने खूब आनंद लिया। तीजा मनाने मायके आईं बहनों व बेटिओ ने शाम को एकत्रित होकर पोरा पटकने का रस्म पूरा किया l दिलेश्वर मढरिया ने बताया कि ग्रामीण अंचल में ढोल-नगाड़ों की गूंज और पारंपरिक गीतों से माहौल भक्तिमय बना रहा। वहीं नन्हें बच्चों ने मिट्टी के बैल सजाकर झांकियां निकालीं और घर-घर पारंपरिक पकवान खुरमी, ठेठरी, गुलगुला और आइरसा बनाकर पर्व की खुशी साझा की। प्राप्त जानकारी के अनुसार इस पर्व को कृषि और पशुधन का सम्मान दिवस माना जाता है।पोला पर्व पर घरों में पोला, नंदी बैला व जांता सहित अन्य कृषि यंत्रों का पूजन अर्चना किया गया। साथ ही इनके ऊपर छत्तीसगढ़िया व्यंजन जैसे ठेठरी, खुरमी, चिला, बरा का भोग लगाकर बहनें अपने पोला को गांव के बाहर खुले मैदान पर ले जाकर फोड़ी तो छोटे-छोटे बच्चे मिट्टी के बने नंदीया बैला को गांव की गलियों में दौड़या वहीं छोटी-छोटी बालिकाएं जांता चलाने में मशगूल थीं।

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