
हिरमी – रावन: महामाया देवी के पावन धरा हिरमी में समस्त ग्रामवासियो के सहयोग से बालाजी प्रांगण में चल रही शिव महापुराण कथा के तीसरे दिन श्रोता झूम उठे। चित्रकूट से शिक्षा प्राप्त अमेरा ( पलारी ) से कथावाचिका राधिकादेवी पाण्डेय के श्रीमुख से कथा के दौरान, श्रोताओं ने उत्साह और आनंद का अनुभव किया, जिससे वातावरण भक्तिमय और ऊर्जावान हो गया।कथा के तीसरे दिन, श्रोताओं ने शिव महापुराण की कथा को बड़े ही उत्साह और आनंद के साथ सुना। कथावाचिका के अनुसार, कथा के दौरान, श्रोताओं ने न केवल कथा सुनी, बल्कि वे कथा के साथ-साथ झूमते भी रहे, जिससे वातावरण भक्तिमय और ऊर्जावान हो गया। यह उत्साह और आनंदपूर्ण माहौल दर्शाता है कि कथा श्रोताओं के दिलों को छू रही थी और उन्हें भगवान शिव की महिमा से जोड़ रही थी l वही आगे नारद जी की कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा जब नारद जी काम पर विजय प्राप्त कर लेते हैं और देव ऋषि नारद देवाधिदेव महादेव के पास जाते हैं शंकर भगवान ने देखा कि देव ऋषि नारद आए हैं तो उन्हें प्रणाम किया। महादेव ने कहा है कि कोई ऋषि कोई उपासक कोई संत घर आया है तो उसका सम्मान करना सीखिए। पुरी शिवमहापुराण कथा को उठाकर देख लीजिए चौबीस हजार श्लोक की यह कथा है, पूरी कथा में किसी भी देवी या देवता की कहीं भी निंदा नहीं की गई है। परंतु यह लिखा गया है कि शंकर करुणा कृपा और दया कैसे करते हैं। भगवान को प्रिय नहीं है निंदक, नकली और नास्तिक प्रिय है।जब नारद जी ने शिव जी से कहा कि जिस कामदेव पर आप नहीं विजय कर पाए उस पर मैं विजय प्राप्त कर चुका हूं,मैंने स्वयं जीता है। भगवान शंकर सिंहासन से उठकर अपने गले की रुद्राक्ष की माला देवऋषि नारद के गले में डाल दी। कोई साधक कोई उपासक अपने गले की माला उतार कर आपके गले में डाल रहा है तो इसका मतलब यह है कि मेरे परमात्मा के चित्र में, जो मेरे चित्र में राम नाम की माला जपी हुई है वह मेरे मालिक के माध्यम से तुम्हारे सीने तक जाए और तुम्हारे अंदर उतर जाए तुम्हारे हृदय उतर जाए।”भोले मैं तेरी पतंग शंभू मैं तेरी पतंग हवा विच उड़ती जावांगी बाबा डोर जाने छड़ी ना में कदी जावांगी” आदि भजन पर लोग खूब झूमे कथा में को आगे बढ़ाते हुए कहा कि लोग कहते हैं शंकर भगवान भस्म करते हैं परंतु शिव को समझो तो सही। शंकर भगवान अनायास कभी क्रोध नहीं करते अगर शंकर भगवान क्रोध के देवता होते हैं तो उनका नाम आशुतोष नहीं होता। शिव महापुराण की कथा कहती है की शंकर भगवान भस्म नहीं करते हैं उनके शरण में जाने पर काम क्रोध वासना अहंकार शक्ति तृष्णा को शिव भस्म कर देते हैं। भक्ति में झूलते हुए की और महा आरतीके बाद प्रसाद वितरण किया गया l







