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धर्म-कर्म जब-तक सत्संग नहीं करेंगे तब-तक काम, क्रोध, लोभ, मोह से मुक्ति नहीं मिलेगा : श्रद्वा दीदी

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नितिन कुमार जायसवाल तिल्दा-नेवरा: भगवान में भरोसा होना बहुत जरूरी है। दुनिया में सब मिल जाएगा लेकिन सत्संग का मिलना दुर्लभ है। एक क्षण का सत्संग भी हमें बैकुंठ ले जा सकता है। जब-तक सत्संग नहीं करेंगे तब-तक काम, क्रोध, लोभ, मोह से मुक्ति नहीं मिलेगा। संतो का हदय मख्खन जैसा कोमल होता है। उक्त विचार ग्राम मढ़ी के ठाकुरदेव चौक में समस्त मोहल्ले वासियों की ओर से चल रही संगीतमय श्रीमद् भागवत महापुराण सप्ताह ज्ञान यज्ञ के चौंथे दिन रविवार को कथावाचिका भागवत मर्मज्ञा पूज्या श्रद्वा दीदी सिमगा वाली ने व्यक्त की। कथा प्रसंग में कथा व्यास ने पुरंजन उपाख्यान, जड़ भरत चरित्र एवं प्रहलाद चरित्र कथा पर विस्तारपूर्वक व्याख्यान दिया। व्यास गद्दी से कथा व्यास ने कहा कि, हिरणकश्यप नामक दैत्य ने घोर तप किया, तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी प्रकट हुए और कहा कि जो मांगना है मांगों। यह सुनकर हिरनयाक्ष ने अपनी आंखें खोली और ब्रह्माजी को अपने समक्ष खड़ा देखकर कहा प्रभु मुझे केवल यही वर चाहिए कि मैं न दिन में मरूं, न रात को, न अंदर, न बाहर, न कोई हथियार काट सके, न आग जला सके, न ही मैं पानी में डूबकर मरूं, सदैव जीवित रहूं। उन्होंने उसे वरदान दिया। हिरणकश्यप के पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु के परम भक्त थे। हिरणकश्यप भगवान विष्णु को शत्रु मानते थे। उन्होंने अपने पुत्र को मारने के लिए तलवार उठाया था कि खंभा फट गया। उस खंभे में से विष्णु भगवान नरसिंह का रूप धारण करके जिसका मुख शेर का व धड़ मनुष्य का था प्रगट हुए। भगवान नरसिंह अत्याचारी दैत्य हिरनयाक्ष को पकड़ कर उदर चीर कर वध किया। इस धार्मिक प्रसंग को आत्मसात करने के लिए भक्त देर रात तक भक्ति के सागर में गोते लगाते रहे। आगे कथा प्रसंग में कथावाचिका ने बताया कि, कर्म ही जीवन का सार है। अच्छा कर्म करोगे तो सुख मिलेगा। गलत कर्म करोगे तो दुख मिलेगा। कर्म को संवारेंगे तो मोक्ष हो जाएगा और मोक्ष हो जाएगा तो पुनर्जन्म और पुनर्मृत्यु से मुक्त हो जाएंगे। यहां कर्म को करना कठिन नहीं है। आते-जाते, भोजन बनाते भी राम का नाम जप सकते हैं। तभी कर्म बनेगा। भक्ति करने से सौ जन्म के पाप छुट जाते हैं। मोह-माया में डूबकर रहे तो भक्ति किसी काम की नहीं।आगे कहा कि, यहां न तो पत्नी साथ देता है और न ही मित्र और परिवार। अगर कोई साथ देगा तो केवल श्मशानघाट तक ही। मनुष्य को इस शरीर का अभिमान छोड़ देना चाहिए। क्योंकि चेहरा चमकाने से कुछ नहीं होता चरित्र अच्छा रखो यही याद रखा जाएगा। यह शरीर यहीं छूट जाएगा केवल हमारे साथ धर्म ही जाएगा। जड़भरत प्रसंग पर उन्होंने कहा कि, जो इस कथा को समझ लेगा उसे न तो सुख में सुख का अनुभव होगा न ही दुख में दुख होगा। हर परिस्थितियों में समानता कैसे बरकरार रखे यह बात हमें जड़भरत चरित्र प्रसंग से सीखने को मिलता है। कथा सुनने प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रोतागण कथा पंडाल पहुंच रहे हैं। परायणकर्ता पंडित राहुल तिवारी पंडरिया वाले है।

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