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छेर छेरा माई कोठी के धान हेर हेरा:छत्तीसगढ़ का ‘छेरछेरा’ पर्व, निभाई जाती है अनोखी परंपरा

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छेर छेरा माई कोठी के धान. आज मनाया जगाएगा, छत्तीसगढ़ का ‘छेरछेरा’ पर्व, निभाई जाती है अनोखी परंपरा : – दिलेश्वर मढ़रिया

हिरमी – रावन : भारत त्योहारों का देश है और यहां हर साल, हर माह, हर राज्य में तिथि अनुसार कई तरह के त्योहार मनाए जाते हैं. वैसे ही प्रत्येक प्रांतो में अलग-अलग पर्व भी मनाया जाता है. भारत में मनाए जाने वाले हर त्योहार और लोक पर्व के पीछे कोई ना कोई ऐतिहासिक कहानी होती है, जिसमें हमारे देश की सांस्कृतिक विरासत की झलक देखने को मिलती है, जो पीढ़ियों से हमारे देश में मनाए जा रहे है. ऐसा ही एक लोक पर्व छेरछेरा है, जो मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ में मनाया जाता है.इस वर्ष 13 जनवरी को मनाया जाएगा छेरछेरा छेरछेरा पर्व पौष पूर्णिमा के दिन छत्तीसगढ़ में बड़े ही धूमधाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है. इस साल 2025 में छेरछेरा 13 जनवरी सोमवार को मनाया जाएगा. इसे छेरछेरा पुन्नी या छेरछेरा तिहार भी कहते हैं. इसे दान लेने-देने का पर्व माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन दान करने से घरों में धन-धान्य की कोई कमी नहीं होती. इस दिन छत्तीसगढ़ में बच्चे और बड़े, सभी घर-घर जाकर अन्न का दान ग्रहण करते हैं और युवा डंडा नृत्य करते हैं.सभी कहते हैं छेरछेरा…’माई कोठी के धान ला हेर हेरा’ इस पर्व को मानते हुए बच्चों और बड़े बुजुर्गों की टोलियां एक अनोखे बोल, बोलकर दान मांगते हैं. दान लेते समय बच्चे ‘छेर छेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा’ कहते हैं और जब तक घर की महिलाएं अन्न दान नहीं देती, तब तक वे कहते रहेंगे ‘अरन बरन कोदो दरन, जब्भे देबे तब्भे टरन’. इसका मतलब ये होता है कि बच्चे कह रहे हैं, मां दान दो, जब तक दान नहीं दोगे, तब तक हम नहीं जाएंगे.दिलेश्वर मढ़रिया ने बताया कि छत्तीसगढ़ में छेरछेरा त्योहार तब मनाया जाता है, जब किसान अपने खेतों से फसल काट और उसकी मिसाई कर अन्न (नया चावल) को अपने घरों में भंडारण कर चुके होते हैं. यह पर्व दान देने का पर्व है. किसान अपने खेतों में सालभर मेहनत करने के बाद अपनी मेहनत की कमाई धान दान देकर छेरछेरा त्यौहार मनाते हैं. माना जाता है कि दान देना महापुण्य का कार्य होता है. किसान इसी मान्यता के साथ अपने मेहनत से उपजाई हुई धान का दान देकर महापुण्य की भागीदारी निभाने हेतु छेरछेरा त्यौहार मनाते हैं.इस दिन बच्चे अपने गांव के सभी घरों में जाकर छेरछेरा कहकर अन्न का दान मांगते हैं और सभी घरों में अपने कोठी, अर्थात् अन्न भंडार से निकालकर सभी को अन्नदान करते हैं. गांव के बच्चे टोली बनाकर घर-घर छेरछेरा मांगने जाते हैं. बच्चों के अलावा गांव की महिलाएं पुरूष बुजुर्ग सभी वर्ग के लोग टोली में छेरछेरा त्यौहार मनाने घर-घर जाकर छेरछेरा दान मांगते हैं

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