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संत श्री सियाराम बाबा लगभग 120 वर्ष की उम्र में बुधवार सुबह 6.10 मिनट पर सुबह ब्रह्म मुहूर्त में हुए ब्रह्मलीन, भक्तों में शोक की लहर

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अनिल उपाध्याय खरगोन/ देवास/MP: मध्यप्रदेश के निमाड़ क्षेत्र के संत, नर्मदा जी के पावन तट, ग्राम तेली भट्टयाण पर अखंड साधना करने वाले और अपने संपूर्ण जीवन को भगवान श्रीराम के चरणों में अर्पित करने वाले महान संत श्री सियाराम बाबा जी का बुधवार प्रातः 6.10 मिनट पर देवलोक गमन हो गया।बाबा जी ने जीवन पर्यंत नर्मदा जी के किनारे अपनी कुटिया में रामायण जी का पाठ करते हुए समाज को धर्म, भक्ति और सदाचार का संदेश दिया। उनकी साधना, तपस्या और प्रभु के प्रति समर्पण हम सभी के लिए प्रेरणादायक है। उनके द्वारा नागलवाड़ी में मंदिर निर्माण में ढाई करोड़ रुपए दान दिए गए थे। बाबा दक्षिणा में मात्र दस रुपए लेते थे और दानदाता का नाम अपनी डायरी में लिखते थे।उनका पूरा जीवन मानवता, धर्म और नर्मदा मैया की सेवा में समर्पित रहा। उनकी उपस्थिति मात्र से लोगों को आत्मिक शांति और मार्गदर्शन मिलता था। उनका आशीर्वाद और उपदेश समाज को सदैव प्रेरित करते रहेंगे।उनके देवलोक गमन से समाज और धर्म जगत को अपूरणीय क्षति हुई है। उनके निधन की खबर लगते ही। पूरे मध्यप्रदेश सहित देशभर में शोक की लहर फैल गई। प्रदेश के मुखिया मोहन यादव सहित मंत्री मंडल सहित विपक्ष के नेताओं ने भी गहरा दुख व्यक्त किया है।————————————12 वर्ष मौन व्रत के बाद बोले – ‘सियाराम’ … तो उन्हें मिला यही नाम ..!कई दशकों से से मध्यप्रदेश में खरगौन के पास ही ग्राम भट्टयाण में रहते थे । भट्याण बुजुर्ग में विशेषकर गुरु पूर्णिमा एवं सामान्य दिनों में भी संत सियाराम बाबा का पूजन करने बड़ी संख्या में बाबा के भक्त आते रहे । श्री सियाराम बाबा ने 12 साल का मौन व्रत धारण किया था। कोई नहीं जानता था बाबा कहां से आए हैं। बाबा ने मौन व्रत तोड़ा और पहला शब्द सियाराम बोले तब से गांव वाले उनको सियाराम बाबा कहते हैं। 10 साल की खड़ेश्वरी सिद्धि : भक्त बतातेे हैं मौसम कोई भी हो बाबा केवल एक लंगोट पहनते हैं। उन्होंने 10 साल तक खड़ेश्वरी सिद्धी की है। इसमें तपस्वी सोने, जागने सहित हर काम खड़े रहकर ही करते हैं। खड़ेश्वरी साधना के दौरान नर्मदा में बाढ़ आई। पानी बाबा की नाभि तक पहुंच गया, लेकिन वे अपनी जगह से नहीं हटे।कई विदेशी भक्त भी पहुंचते हैं:बाबा के दर्शन के लिए, भक्तों के मुताबिक अर्जेंटीना व ऑस्ट्रिया से कुछ विदेशी लोग पहुंचे। उन्होंने बाबा को 500 रुपए भेंट में दिए। संत ने 10 रुपए प्रसादी के रखकर बाकी लौटा दिए। वे भी आश्चर्यचकित थे। गांव के ही मुकुंद केवट, राजेश छलोत्रा, पूनमचंद बिरले, हरीश बिरले के अनुसार बुजुर्ग बताते है बाबा 50-60 साल पहले यहां आए थे। कुटिया बनाई ओर रहने लगे। हनुमानजी की मूर्ति स्थापित कर सुबह-शाम राम नाम का जप व रामचरितमानस पाठ करते थे। बाबा का जन्म मुंबई में हुआ। वहीं कक्षा 7-8 तक पढ़ाई हुई। कम उम्र में एक गुजराती साहूकार के यहां मुनीम का काम शुरू किया। उसी दौरान कोई साधु के दर्शन हुए। मन में वैराग्य व श्रीराम भक्ति जागी। घर-संसार त्यागा और तप करने हिमालय चले गए। कितने साल कहां तप किया, उनक गुरु कौन थे कोई नहीं जानता। बाबा ने यह किसी को नहीं बताया। पूछने पर एक ही बात कहते थे मेरा क्या है, मैं तो सिर्फ मजा देखता हूं’। ग्राम के रामेश्वर बिरले व संतोष पटेल ने बताया बाबा रोज नर्मदा स्नान करते हैं। नर्मदा परिक्रमा करने वालों की सेवा खुद करते हैं। सदाव्रत में दाल, चावल, तेल, नमक, मिर्च, कपूर, अगरबत्ती व बत्ती भी देते हैं। जो भी भक्त आश्रम आता है बाबा अपने हाथों से चाय बनाकर पिलाते हैं। कई बार नर्मदा की बाढ़ की वजह से गांव के घर डूब जाते हैं। ग्रामीण ऊंची सुरक्षित जगह चले जाते है। लेकिन बाबा अपना आश्रम व मंदिर छोड़कर कहीं नहीं जाते। बाढ़ के दौरान मंदिर में बैठकर रामचरितमानस पाठ करते हैं। बाढ़ उतरने पर ग्रामीण उन्हें देखने आते हैं तो कहते हैं मां नर्मदा आई थी। दर्शन व आशीर्वाद देकर चली गई। मां से क्या डरना, वो तो मैया है

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