अनिल उपाध्याय खातेगांव: कहा जाता है सरस्वती नदी में तीन दिन, यमुनाजी में सात दिन और गंगाजी में डुबकी लगाई जाए तब पुण्य मिलता है। मां नर्मदा की ऐसी महिमा बताई जाती है कि उनका दर्शन मात्र कर लिया जाए तो मां नर्मदा हमारा कल्याण करती है।आदिगुरु शंकराचार्य ओंकारेश्वर की सिद्ध भूमि में नर्मदा के तट पर बैठकर कहते हैं- त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे। रामभरोस सेठ (सनोनिया परिवार) द्वारा ग्राम सिलफोडखेडा में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के द्वितीय दिवस कथा प्रवक्ता पं. शैलेन्द्र शास्त्री (शिव कोठी ओमकारेश्वर) ने उक्त उदगार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि आप कहीं तीर्थ में नहीं जा सकते, साधना करने के लिए अधिक समय नहीं है तो आप केवल मां नर्मदा के किनारे चले जाएं। तीर्थ में जाने, वेदों को पढ़ने, यज्ञ को करने का जो पुण्य प्राप्त होता है वह केवल भगवती नर्मदा के तट पर जाकर मां नर्मदा के दर्शन करने से मिल जाता है।अपने ज्ञान से सबका कल्याण करता है वह है नारद
पं.शास्त्री ने कहा कि परमात्मा की कृपा से व्यक्ति धर्म-कर्म से जुड़ता है, सत्य मार्ग पर चलता है। हमारे संतों, धर्म ग्रंथों, महापुराण का मजाक न उड़ाएं। उन्होंने नारदजी की महिमा बताते हुए कहा कि आज नारद को सही रूप में परिभाषित नहीं किया जाता जबकि अपने ज्ञान से जो सबका कल्याण करता है वह है नारद और जिसको नारद मिले हैं उसे भगवान मिले हैं। नारद भगवान का दर्शन कराने वाले हैं। नारद परम ज्ञानी हैं। साधना के मार्ग चले वह साधु, सम और प्रसन्न रहे वह संत
पं.शास्त्री ने कहा कि संत कभी किसी का बुरा नहीं करते। भगवान संतों-महापुरुषों की महिमा गाते हैं। जो साधना के मार्ग पर चले वह साधु होता है। संत की कोई वेशभूषा नहीं होती। संत एक स्वभाव, विचारधारा, मानसिकता का नाम है। जो अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सम और प्रसन्न रहता है वह संत माना जाता है। जो भगवान को ढूंढता है वह साधु और जिसे भगवान ढूंढते हैं उसे संत कहा जाता है।प्रसन्न रहना भी भगवान की भक्ति का एक अंग है
उन्होंने कहा कि भक्ति सभी के जीवन में है। प्रसन्न रहना भी भगवान की भक्ति का एक अंग है। इसलिए हमेशा मुस्कुराते रहना चाहिए। मुस्कुराना जिंदगी का दूसरा नाम है। संत-महापुरुषों का चरित्र हम देखेंगे तो कैसी भी स्थिति हो हर समय आनंद में डूबे रहते हैं, प्रसन्न रहते हैं।ज्ञान, वैराग्य, त्याग की बातें ही नहीं, अनुसरण भी करें
पं.शास्त्री ने कहा कि हम ज्ञान, वैराग्य, त्याग की बातें बहुत करते हैं पर अनुसरण नहीं करते। रामायण में मिलता है कि दुनिया में उपदेश करने वाले बहुत मिलेंगे लेकिन अपने आचरण और व्यवहार में लाने वाले बहुत कम मिलेंगे। जब तक ज्ञान की बातें जीवन में न उतारी जाएं, अनुसरण न किया जाए तब तक व्यर्थ माना जाएगा। केवल भोजन की थाली को देखने या भोजन का नाम लेने से पेट नहीं भरेगा उसे ग्रहण करना पड़ेगा। उन्होंने मां गंगा की महिमा सहित धुंधकारी, राजा उत्तानपाद आदि की कथाओं का विस्तार से वर्णन किया।