ग्रह नक्षत्रों का विज्ञान क्या है? कृपया पूरा पढ़े….
न्यूज डेस्क छत्तीसगढ़: ग्रह नक्षत्रों का विज्ञान, जिसे हम ज्योतिष शास्त्र के नाम से जानते हैं, एक प्राचीन विज्ञान है जो ब्रह्मांड में स्थित ग्रहों, नक्षत्रों और अन्य खगोलीय पिंडों का अध्ययन करता है और उनका हमारे जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण करता है।
इसका इतिहास हजारों साल पुराना है और यह विज्ञान भारत, ग्रीस, चीन और माया सभ्यता जैसे विभिन्न संस्कृतियों में प्रचलित रहा है।
यहाँ ग्रह नक्षत्रों के विज्ञान के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं का विस्तृत विवरण दिया गया है:
1. ग्रह (Planets):
ग्रह वे खगोलीय पिंड होते हैं जो सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। भारतीय ज्योतिष में नौ मुख्य ग्रहों को माना गया है, जिन्हें ‘नवग्रह’ कहा जाता है:
– सूर्य(Sun)
– चंद्रमा(Moon)
– मंगल(Mars)
– बुध(Mercury)
– गुरु(Jupiter)
– शुक्र(Venus)
– शनि(Saturn)
– राहु(Rahu)
– केतु(Ketu)
2. नक्षत्र :
नक्षत्र आकाश में स्थित तारों के समूह होते हैं जो विशिष्ट आकृतियाँ बनाते हैं। भारतीय ज्योतिष में कुल27 नक्षत्र होते हैं, जिन्हें चंद्रमा के मासिक पथ पर विभाजित किया गया है। प्रत्येक नक्षत्र का एक स्वामी ग्रह होता है और यह व्यक्ति की कुंडली पर विशेष प्रभाव डालता है।
3. राशि
राशि चक्र 12 राशियों में विभाजित होता है, और प्रत्येक राशि 30 अंश का एक खंड होता है। ये राशियाँ हैं:
– मेष(Aries)
– वृषभ(Taurus)
– मिथुन(Gemini)
– कर्क(Cancer)
– सिंह (Leo)
– कन्या(Virgo)
– तुला(Libra)
– वृश्चिक(Scorpio)
– धनु(Sagittarius)
– मकर(Capricorn)
– कुंभ(Aquarius)
– मीन(Pisces)
4. जन्म कुंडली:
जन्म कुंडली व्यक्ति के जन्म समय और स्थान के आधार पर ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति का चार्ट है। यह चार्ट व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए उपयोग किया जाता है जैसे कि स्वास्थ्य, करियर, विवाह, संतान, आदि। जन्म कुंडली को विभाजित किया गया है 12 घरों(भाव) में, और प्रत्येक घर जीवन के एक विशेष क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है।
5. ग्रहों के गोचर :
ग्रहों के गोचर का मतलब होता है ग्रहों की चाल और उनका विभिन्न राशियों में प्रवेश। गोचर का व्यक्ति की कुंडली पर बड़ा प्रभाव पड़ता है और यह समय-समय पर व्यक्ति के जीवन में बदलाव लाता है।
6. दशा और अंतरदशा :
दशा और अंतरदशा ग्रहों के प्रभाव की समयावधि को दर्शाते हैं। भारतीय ज्योतिष में प्रमुख दशा प्रणाली ‘विंशोत्तरी दशा’ है, जिसमें प्रत्येक ग्रह की दशा एक निश्चित अवधि तक चलती है।
7. वैज्ञानिक दृष्टिकोण :
हालांकि ज्योतिष शास्त्र का एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक पहलू है, लेकिन यह विज्ञान के मानदंडों के अनुसार नहीं माना जाता है। ज्योतिष के सिद्धांतों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और इसे विज्ञान में प्रमाणित नहीं किया जा सकता। फिर भी, इसकी प्रासंगिकता और लोकप्रियता सांस्कृतिक और व्यक्तिगत मान्यताओं के आधार पर बनी हुई है।
8. ज्योतिष शास्त्र के प्रकार :
– वैदिक ज्योतिष : भारतीय परंपरा में प्रचलित ज्योतिष।
– पाश्चात्य ज्योतिष : पश्चिमी देशों में प्रचलित ज्योतिष।
– चीनी ज्योतिष : चीन में प्रचलित ज्योतिष प्रणाली।
– माया ज्योतिष : माया सभ्यता द्वारा विकसित ज्योतिष प्रणाली।
9. उपाय :
ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए विभिन्न उपाय बताए गए हैं जैसे कि रत्न पहनना, मंत्र जप, दान, व्रत, पूजा आदि। इन उपायों का उद्देश्य ग्रहों की नकारात्मक ऊर्जा को कम करना और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देना है।
जो ब्रह्माण्ड में है वह पिंड (शरीर) में भी है। इस दृष्टि से ब्रह्माण्ड के ग्रह नक्षत्रों का प्रभाव पिण्ड पर भी पड़ता है ।
दायें स्वर से सम्बन्धित नाड़ी चन्द्र तत्त्व से प्रभावित कही गई है ऐसा योगियों को अनुभव भी है ग्रह नक्षत्रों के शुभाशुभ प्रभाव के लिये हवन, मन्त्र, उपासना तथा नवरत्न अष्ट धातु धारण आदि अन्य विधियों का वर्णन हमारे धर्मग्रन्थों में किया गया है।
वेदों में भी उनका वर्णन आया है ब्रह्माण्ड स्थित ग्रह का पिण्ड से सम्बन्ध इस प्रकार है। पिंड में सूर्य का प्रतिनिधि आत्मा, चन्द्रमा का मन, मंगल का रक्त, बुध का वाणी बृहस्पति का ज्ञान, शुक्र का वीर्य तथा शनि का सुख दुःखानु भूति से सम्बन्ध है ।
ब्रह्माण्ड स्थिति ग्रहों का प्रभाव पिण्ड पर पढ़ता है। महीं के अनुकूल रहने पर अच्छा तथा प्रतिकूल रहने पर विपरीत प्रभाव स्वास्थ्य तथा शरीर पर पड़ता है ।
इसलिये सनातन धर्म में वैज्ञानिक खोज करके ऋषियों ने ऐसी विधियां बतलाई है जिसके अनुसार हम उनके दुष्ट प्रभाव से बच सकें और अच्छे प्रभाव को प्राप्त कर सकें।
रत्नों में लाल माणिक्य में सूर्य तस्व, सफेद पीले व श्याम कान्ति वाले मोती में चन्द्र तत्व पीलापन लिये हुये मूंगे में मंगल तत्त्व हरे पन्ना में बुध तत्त्व, सोने की सी आभा वाले पुखराज में बृहस्पति तत्त्व सफेद हीरे में शुक्र तत्त्व तथा नीले नीलम में शनि तत्त्व विद्यमान है।
इसलिए जिस नक्षत्र सम्वन्धित शक्ति की आवश्यकता हो उस ग्रह के अनुकूल रत्न धारण करने से उससे सम्बन्धित अशान्ति, अस्वस्थता तथा रोग दूर करके शक्ति तथा स्वास्थ्य प्राप्त किया जा सकता है, ऐसा वर्णन है।
इसी प्रकार धातुओं में सोना, चांदी, तांबा, पीतल कांसा, पारा और सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति शुक्र तथा शनि के तत्त्व रहते हैं। जिनका शुभाशुभ प्रभाव पड़ता है।
सोने में सूर्य तत्त्व रहने के कारण वह तेज ओज तथा दीर्घायु प्रदान करता है। (अथर्ववेद १६/२६१) और इसीलिये सूर्य के अन्य नामों के साथ साथ उसका एक नाम हिरण्य भी है।
चांदी में चन्द्रस्व है इसलिये उसका नाम चन्द्रान्ति भी है।
तांबे में मंगल तत्व है,
पारे में शुक तथ्य है इसलिये उसका नाम रसेन्द्र भी है।
इसी प्रकार पीतल, कांसे और लोहे में बुध,
बृहस्पति और शनि तत्त्व रहता है।
शनिवार को लोहा न खरीदने की प्रथा आज भी हमारे यहां सनातन धर्मियों में प्रचलित है।
इस प्रकार वनस्पतियों में भी अपामार्ग, याक, डाक, खैर गूलर, पीपल तथा कुश में सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र तथा शनि का गुण तथा प्रभाव रहता है। शरीर में जिस तत्त्व का अभाव हो उसकी पूर्ति तथा अनुकूलता के लिये उसी औषधि का प्रयोग किया जाता है। ग्रह पूजन के मन्त्रों के माध्यम से प्रार्थना करके हम उनसे सम्बन्ध स्थापित करते हैं। इस प्रकार रत्न, धातु, औषधि तथा मन्त्रों के आधार पर ब्रह्माण्ड के ग्रहों की अनुकूलता हम पिण्ड में ग्रहण कर सकें इसलिये ऋषियों ने इस पर सूक्ष्म विचार करके हमारे कल्याण के लिये उसे धर्म का अंग बना दिया है!ज्योतिष शास्त्र का उद्देश्य न केवल भविष्यवाणी करना है बल्कि व्यक्ति को आत्म-ज्ञान और आत्म-सुधार की दिशा में मार्गदर्शन करना भी है। यह एक प्राचीन परंपरा है जो सदियों से लोगों की जीवन की दिशा निर्धारण में सहायक रही है।