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तिथि अनुसार भोजन ग्रहण करने के नियम, भोजन करने संबंधी कुछ जरूरी नियम….कृपया पूरा पढ़े

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न्यूज डेस्क छत्तीसगढ़: हिन्दू धर्म में भोजन के करते वक्त भोजन के सात्विकता के अलावा अच्छी भावना और अच्छे वातावरण और आसन का बहुत महत्व माना गया है। यदि भोजन के सभी नियमों का पालन किया जाए तो व्यक्ति के जीवन में कभी भी किसी भी प्रकार का रोग और शोक नहीं होता।

हिन्दू धर्म अनुसार भोजन शुद्ध होना चाहिए, उससे भी शुद्ध जल होना चाहिए और सबसे शुद्ध वायु होना चाहिए। यदि यह तीनों शुद्ध है तो व्यक्ति कम से कम 100 वर्ष तो जिंदा रहेगा।

आजो जानते हैं भोजन के कुछ खास नियम।

तिथि अनुसार भोजन करने से न केवल हमारे शरीर को सही पोषण मिलता है, बल्कि हमारे मन और आत्मा को भी शांति मिलती है।

यह प्राचीन भारतीय परंपरा हमें स्वस्थ, संतुलित और आध्यात्मिक जीवन जीने की दिशा में मार्गदर्शन करती है।

प्रतिपदा को कूष्माण्ड (कुम्हड़ा, पेठा) न खाये, क्योंकि यह धन का नाश करने वाला है।

द्वितीया को बृहती बैंगन या कटहल खाना निषिद्ध है।

तृतीया को परवल खाना शत्रुओं की वृद्धि करने वाला है।

चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है।

पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है।

षष्ठी को नीम की पत्ती, फल या दातुन मुँह में डालने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है।

सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ता है था शरीर का नाश होता है।

अष्टमी को नारियल का फल खाने से बुद्धि का नाश होता है।

नवमी को लौकी खाना गोमांस के समान है।

एकादशी को शिम्बी(सेम), द्वादशी को पूतिका(पोई) अथवा त्रयोदशी को बैंगन खाने से पुत्र का नाश होता है।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंड 27.29-34)

अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रान्ति, चतुर्दशी और अष्टमी तिथि, दशमी एकादशी और द्वादशी, रविवार, श्राद्ध और व्रत के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण,ब्रह्म खंड 27.29-38)

रविवार के दिन मसूर की दाल, अदरक और लाल रंग का साग नहीं खाना चाहिए।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75.90)

सूर्यास्त के बाद कोई भी तिलयुक्त पदार्थ नहीं खाना चाहिए।
(मनु स्मृतिः 4.75)

लक्ष्मी की इच्छा रखने वाले को रात में दही और सत्तू नहीं खाना चाहिए। यह नरक की प्राप्ति कराने वाला है।
(महाभारतः अनु. 104.93)

दूध के साथ नमक, दही, लहसुन, मूली, गुड़, तिल, नींबू, केला, पपीता आदि सभी प्रकार के फल, आइसक्रीम, तुलसी व अदरक का सेवन नहीं करना चाहिए। यह विरूद्ध आहार है।

दूध पीने के 2 घंटे पहले व बाद के अंतराल तक भोजन न करें। बुखार में दूध पीना साँप के जहर के समान है।

काटकर देर तक रखे हुए फल तथा कच्चे फल जैसे कि आम, अमरूद, पपीता आदि न खायें।

फल भोजन के पहले और केवल सुबह नहाने के बाद पूजा पाठ यज्ञ etc कर के पहले 2-3 glass पानी पीएं फिर 1/2 घंटे बाद फल खायें फिर 1/2 घंटे बाद सुबह का भोजन लें । रात को फल नहीं खाने चाहिए।

अभक्ष्य-भक्षण करने (न खाने योग्य खाने) पर उससे उत्पन्न पाप के विनाश के लिए पाँच दिन तक गोमूत्र, गोमय, दूध, दही तथा घी का आहार करो।

भोजन करने संबंधी कुछ जरूरी नियम…

1. भोजन करने से पूर्व : 5 अंगों (2 हाथ, 2 पैर, मुख) को अच्छी तरह से धोकर ही भोजन करना चाहिए।

▪️ भोजन से पूर्व अन्नदेवता, अन्नपूर्णा माता की स्तुति करके उनका धन्यवाद देते हुए तथा ‘सभी भूखों को भोजन प्राप्त हो’, ईश्वर से ऐसी प्रार्थना करके भोजन करना चाहिए।

▪️ भोजन बनाने वाला स्नान करके ही शुद्ध मन से, मंत्र जप करते हुए ही रसोई में भोजन बनाएं और सबसे पहले 3 रोटियां (गाय, कुत्ते और कौवे हेतु) अलग निकालकर फिर अग्निदेव को भोग लगाकर ही घर वालों को खिलाएं।

▪️ भोजन किचन में बैठकर ही सभी के साथ करें। प्रयास यही रहना चाहिए की परिवार के सभी सदस्यों के साथ मिल बैठकर ही भोजन हो। नियम अनुसार अलग-अलग भोजन करने से परिवारिक सदस्यों में प्रेम और एकता कायम नहीं हो पाती।

2. भोजन समय :- प्रातः और सायं ही भोजन का विधान है, क्योंकि पाचनक्रिया की जठराग्नि सूर्योदय से 2 घंटे बाद तक एवं सूर्यास्त से 2.30 घंटे पहले तक प्रबल रहती है।

जो व्यक्ति सिर्फ एक समय भोजन करता है वह योगी और जो दो समय करता है वह भोगी कहा गया है।

3. भोजन की दिशा :- भोजन पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुंह करके ही करना चाहिए। दक्षिण दिशा की ओर किया हुआ भोजन प्रेत को प्राप्त होता है। पश्चिम दिशा की ओर किया हुआ भोजन खाने से रोग की वृद्धि होती है।

4. ऐसे में न करें भोजन :- शैया पर, हाथ पर रखकर, टूटे-फूटे बर्तनों में भोजन नहीं करना चाहिए। मल-मूत्र का वेग होने पर, कलह के माहौल में, अधिक शोर में, पीपल, वटवृक्ष के नीचे भोजन नहीं करना चाहिए। परोसे हुए भोजन की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए। ईर्ष्या, भय, क्रोध, लोभ, रोग, दीनभाव, द्वेषभाव के साथ किया हुआ भोजन कभी पचता नहीं है।खड़े-खड़े, जूते पहनकर सिर ढंककर भोजन नहीं करना चाहिए।

5. ये भोजन न करें :- गरिष्ठ भोजन कभी न करें।बहुत तीखा या बहुत मीठा भोजन न करें।किसी के द्वारा छोड़ा हुआ भोजन न करें।आधा खाया हुआ फल, मिठाइयां आदि पुनः नहीं खाना चाहिए।खाना छोड़कर उठ जाने पर दुबारा भोजन नहीं करना चाहिए।जो ढिंढोरा पीटकर खिला रहा हो, वहां कभी न खाएं।पशु या कुत्ते का छुआ, रजस्वला स्त्री का परोसा, श्राद्ध का निकाला, बासी, मुंह से फूंक मारकर ठंडा किया, बाल गिरा हुआ भोजन न करें।अनादरयुक्त, अवहेलनापूर्ण परोसा गया भोजन कभी न करें।

6. भोजन करते वक्त क्या करें :- भोजन के समय मौन रहें।▪️रात्रि में भरपेट न खाएं।बोलना जरूरी हो तो सिर्फ सकारात्मक बातें ही करें। भोजन करते वक्त किसी भी प्रकार की समस्या पर चर्चा न करें।भोजन को बहुत चबा-चबाकर खाएं।गृहस्थ को 32 ग्रास से ज्यादा न खाना चाहिए।सबसे पहले मीठा, फिर नमकीन, अंत में कड़वा खाना चाहिए।सबसे पहले रसदार, बीच में गरिष्ठ, अंत में द्रव्य पदार्थ ग्रहण करें।थोड़ा खाने वाले को आरोग्य, आयु, बल, सुख, सुंदर संतान और सौंदर्य प्राप्त होता है।

7. भोजन के पश्चात क्या न करें :-भोजन के तुरंत बाद पानी या चाय नहीं पीना चाहिए। भोजन के पश्चात घुड़सवारी, दौड़ना, बैठना, शौच आदि नहीं करना चाहिए।

8. भोजन के पश्चात क्या करें:- भोजन के पश्चात दिन में टहलना एवं रात में सौ कदम टहलकर बाईं करवट लेटने अथवा वज्रासन में बैठने से भोजन का पाचन अच्छा होता है। भोजन के एक घंटे पश्चात मीठा दूध एवं फल खाने से भोजन का पाचन अच्छा होता है।

9. क्या-क्या न खाएं :- रात्रि को दही, सत्तू, तिल एवं गरिष्ठ भोजन नहीं करना चाहिए। दूध के साथ नमक, दही, खट्टे पदार्थ, मछली, कटहल का सेवन नहीं करना चाहिए। शहद व घी का समान मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए। दूध-खीर के साथ खिचड़ी नहीं खाना चाहिए।

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