न्यूज डेस्क छत्तीसगढ़: माधवराव सप्रे हिन्दी के साहित्यकार, के पत्रकार थे। वे हिन्दी के प्रथम कहानी लेखक के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने राष्ट्रीय कार्य के लिए उपयुक्त अनेक प्रतिभाओं को परख कर उनका उन्नयन किया। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी उनकी अग्रणी भूमिका थी। प्रखर संपादक के रूप में लोक प्रहरी व सुधी साहित्यकार के रूप में उनकी भूमिका लोक शिक्षक की है। कोशकार और अनुवादक के रूप में उन्होंने हिंदी भाषा को समृद्ध किया।
माधवराव सप्रेवर्ष 1902 में उन्होंने काशी नागरी प्रचारिणी सभा के ‘विज्ञान शब्दकोश’ योजना को मूर्तरूप देने की जिम्मेदारी अपने हाथों में ली। उन्होने न केवल विज्ञान शब्दकोश का सम्पादन किया, बल्कि अर्थशास्त्र की शब्दावली की खोजकर उन्होंने इसे संरक्षित और समृद्ध भी किया। कहा जाता है कि हिंदी में अर्थशास्त्रीय चिंतन की परंपरा प्रारंभ सप्रे जी ने ही किया।कुछ लोग उन्हें हिन्दी का प्रथम समालोचक भी मानते हैं।
माधवराव सप्रे का जन्म सन् १८७१ ई० में दमोह जिले के पथरिया ग्राम में हुआ था। बिलासपुर में मिडिल तक की पढ़ाई के बाद मैट्रिक शासकीय विद्यालय रायपुर से उत्तीर्ण किया। १८९९ में कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी ए करने के बाद उन्हें तहसीलदार के रूप में शासकीय नौकरी मिली लेकिन सप्रे जी ने भी देश भक्ति प्रदर्शित करते हए अँग्रेज़ों की शासकीय नौकरी की परवाह न की। सन १९०० में जब समूचे छत्तीसगढ़ में प्रिंटिंग प्रेस नही था तब इन्होंने बिलासपुर जिले के एक छोटे से गांव पेंड्रा से “छत्तीसगढ़ मित्र” नामक मासिक पत्रिका निकाली।[2] हालांकि यह पत्रिका सिर्फ़ तीन साल ही चल पाई। सप्रे जी ने लोकमान्य तिलक के मराठी केसरी को यहाँ हिंदी केसरी के रूप में छापना प्रारम्भ किया तथा साथ ही हिंदी साहित्यकारों व लेखकों को एक सूत्र में पिरोने के लिए नागपुर से हिंदी ग्रंथमाला भी प्रकाशित की। उन्होंने कर्मवीर के प्रकाशन में भी महती भूमिका निभाई।संस्थाओं को गढ़ना, लोगों को राष्ट्र के काम के लिए प्रेरित करना सप्रे जी के भारतप्रेम का अनन्य उदाहरण है। रायपुर, जबलपुर, नागपुर, पेंड्रा में रहते हुए उन्होंने न जाने कितने लोगों का निर्माण किया और उनके जीवन को नई दिशा दी। 26 वर्षों की उनकी पत्रकारिता और साहित्य सेवा ने मानक रचे। पंडित रविशंकर शुक्ल, सेठ गोविंददास, गांधीवादी चिंतक सुन्दरलाल शर्मा, द्वारका प्रसाद मिश्र, लक्ष्मीधर वाजपेयी, माखनलाल चतुर्वेदी, लल्ली प्रसाद पाण्डेय, मावली प्रसाद श्रीवास्तव सहित अनेक हिंदी सेवियों को उन्होंने प्रेरित और प्रोत्साहित किया। जबलपुर को संस्कारधानी बनाने में सप्रे जी ने एक अनुकूल वातावरण बनाया जिसके चलते जबलपुर साहित्य, पत्रकारिता और संस्कृति का केंद्र बन सका।
1920 में उन्होंने जबलपुर में हिंदी मंदिर की स्थापना की, जिसका इस क्षेत्र में सांस्कृतिक और साहित्यिक गतिविधियों को बढ़ाने में अनूठा योगदान है।१९२४ में हिंदी साहित्य सम्मेलन के देहरादून अधिवेशन में सभापति रहे सप्रे जी ने १९२१ में रायपुर में राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की और साथ ही रायपुर में ही पहले कन्या विद्यालय जानकी देवी महिला पाठशाला की भी स्थापना की। यह दोनों विद्यालय आज भी चल रहे हैं।माधवराव सप्रे के जीवन संघर्ष, उनकी साहित्य साधना, हिन्दी पत्रकारिता के विकास में उनके योगदान, उनकी राष्ट्रवादी चेतना, समाजसेवा और राजनीतिक सक्रियता को याद करते हुए माखनलाल चतुर्वेदी ने ११ सितम्बर १९२६ के कर्मवीर में लिखा था −पिछले पच्चीस वर्षों तक पं॰ माधवराव सप्रे जी हिन्दी के एक आधार स्तम्भ, साहित्य, समाज और राजनीति की संस्थाओं के सहायक उत्पादक तथा उनमें राष्ट्रीय तेज भरने वाले, प्रदेश के गाँवों में घूम घूम कर, अपनी कलम को राष्ट्र की जरूरत और विदेशी सत्ता से जकड़े हुए गरीबों का करुण क्रंदन बना डालने वाले, धर्म में धँस कर, उसे राष्ट्रीय सेवा के लिए विवश करने वाले तथा अपने अस्तित्व को सर्वथा मिटा कर, सर्वथा नगण्य बना कर अपने आसपास के व्यक्तियों और संस्थाओं के महत्व को बढ़ाने और चिरंजीवी बनाने वाले थे।
छत्तीसगढ़ के पहला समाचार पत्र छत्तीसगढ़ मित्र पेंड्रा से सन् 1900मे हुआ था प्रकाशन,
पत्रकारिता के जनक पं माधव राव सप्रे के जयंती पर माधव सप्रे जी अमर रहे के नारे लगाकर, पत्रकारों ने स्वच्छता मिशन का दिया संदेश।