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सात चक्रों का संतुलन हमारे समग्र स्वास्थ्य और भलाई के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है…. बढ़िया महत्वपूर्ण बातें

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न्यूज डेस्क छत्तीसगढ़: मनुष्य शरीर पर सात चक्रों का प्रभाव.. महर्षि पतांजली ने अपने ´योग दर्शन´ शास्त्र में शरीर में मौजूद 7 चक्रों का वर्णन किया है, योग में इन चक्रों को सूक्ष्म शरीर का सप्तचक्र कहते हैं। इन सातों चक्रों पर ध्यान करने अर्थात मन को लगाने से आध्यात्मिक व अलौकिक ज्ञान की प्राप्ति होती है। सूक्ष्म शरीर में 7 प्रमुख चक्र होते हैं जिन्हें ऊर्जा केंद्र कहा जाता है।

इन चक्रों का नाम और उनका स्थान इस प्रकार है:1. मूलाधार चक्र (Muladhara Chakra) : – स्थान: रीढ़ की हड्डी के निचले भाग में, गुदा और जननांगों के बीच। – तत्व: पृथ्वी। – रंग: लाल। – मूल मंत्र: “लम”योग शास्त्रों में शरीर के अन्दर जिस दिव्य शक्ति की बातें की गई हैं, उस ऊर्जा शक्ति को कुण्डलिनी शक्ति कहते हैं। यह कुण्डलिनी शक्ति शरीर में जहां सोई हुई अवस्था में रहती है, उसे मूलाधार चक्र कहते हैं। मूलाधार चक्र जननेन्द्रिय और गुदा के बीच स्थित है। ब्रह्माण्ड के निर्माण में जो तत्व मौजूद होते हैं, वे सभी तत्व मनुष्य के अन्दर कुण्डलिनी शक्ति के रूप में मौजूद होते हैं। यह ऊर्जा शक्ति शरीर में मूलाधार में स्थित होती है। मूलाधार चक्र को योग में विश्व निर्माण का मूल माना गया है। यह शक्ति जीवन की उत्पत्ति, पालन और नाश का कारण है। इस चक्र का रंग लाल होता है तथा इसमें 4 पंखुड़ियों वाले कमल की आकृति होती है। अत: मनुष्य के अन्दर पृथ्वी के सभी तत्व मौजूद होते हैं।मूलाधार चक्र पृथ्वी तत्व प्रधान है तथा 4 पंखुड़ियों वाला कमल अर्थात चतुर्भुज के आकार का है। इसका सांसारिक जीवन में बड़ा महत्व है, चक्र में स्थित यह 4 पंखुड़ियां वाला कमल पृथ्वी की चार दिशाओं की ओर संकेत करता है। मूलाधार चक्र का आकार 4 पंखुड़ियों वाला है और इस स्थान पर 4 नाड़ियां आपस में मिलकर 4 पंखुडियों वाले कमल की आकृति की रचना करती है।

मूलाधार चक्र में 4 प्रकार की ध्वनियां- वं, शं, षं, सं होती रहती है। ये ध्वनियां मस्तिष्क एवं हृदय के भागों को कंपित करती हैं। शरीर का स्वास्थ्य इन्हीं ध्वनियों पर निर्भर करता है। मूलाधार चक्र रस, रूप, गन्ध, स्पर्श, भावों व शब्द का मेल है। यह ´अपान´ वायु का स्थान है तथा मल, मूत्र, वीर्य, प्रसव आदि इसी के अधिकार में है। मूलाधार चक्र कुण्डलिनी शक्ति, मानव जीवन की परमचैतन्य शक्ति तथा जीवन शक्ति का मुख्य स्थान भी यही है। यही चक्र मनुष्य की दिव्य शक्ति का विकास, मानसिक शक्ति का विकास और चैतन्यता का मूल स्थान है।

2. स्वाधिष्ठान चक्र (Swadhisthana Chakra) : – स्थान: नाभि के नीचे, जननांगों के क्षेत्र में। – तत्व: जल। – रंग: नारंगी। – मूल मंत्र: “वम”स्वाधिष्ठान चक्र उपस्थि में स्थित है। इसमें 6 पंखुड़ियों वाला कमल होता है। स्वाधिष्ठान चक्र में 6 नाड़ियां आपस में मिलकर 6 पंखुड़ियों वाले कमल के फूल की रचना करती हैं। इस चक्र में 6 ध्वनियां- वं, भं, मं, यं, रं, लं आती रहती हैं। इस चक्र का प्रभाव जन्म, परिवार, भावना आदि से है। स्वाधिष्ठान चक्र जलतत्व प्रधान है। स्वाधिष्ठान चक्र में पृथ्वी तत्व मिलने से परिवार और मित्रों से सम्बंध बनाने में कल्पना का उदय होने लगता है। इस चक्र का ध्यान करने से मन में भावना उत्पन्न होने लगती है और व्यक्ति का मन निर्मल व शुद्ध होने लगता है। स्वाधिष्ठान चक्र भी ´अपान´ वायु के अधीन होता है। इस चक्र वाले स्थान से ही प्रजनन क्रिया सम्पन्न होती है तथा इसका सम्बंध सीधे चन्द्रमा से है। समुद्रों में उत्पन्न होने वाला ज्वार-भाटा चन्द्रमा से नियंत्रित है।मनुष्य के शरीर का तीन चौथाई भाग जल है और शरीर में उत्पन्न उथल-पुथल इस चक्र के असंतुलन के कारण होती है। इसी चक्र के कारण मनुष्य के मन की भावनाएं प्रभावित होती हैं, स्त्रियों में मासिकधर्म आदि चन्द्रमा से सम्बंधित है और इन कार्यो का नियंत्रण स्वाधिष्ठान चक्र से होता है। इस चक्र के द्वारा मनुष्य के आंतरिक और बाहरी संसार में समानता स्थापित होती है। इसी चक्र के कारण व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है। स्वाधिष्ठान चक्र पर ध्यान करने से मन शांत होता है तथा धारणा व ध्यान की शक्ति प्राप्त होती है।

3. मणिपुर चक्र (Manipura Chakra) : – स्थान: नाभि के पास, सौर जाल (Solar Plexus) क्षेत्र में। – तत्व: अग्नि। – रंग: पीला। – मूल मंत्र: “रम”मणिपुर चक्र नाभि में स्थित होता है तथा यह अग्नि तत्व प्रधान है। इस चक्र का रंग पीला होता है। यहां 10 नाड़ियां आपस में मिलकर 10 पंखुड़ियों वाले कमल के फूल की आकृति बनाती हैं। इस कमल का रंग पीला होता है तथा यहां 10 प्रकार की ध्वनियां- डं, ढं, तं, थं, दं, धं, नं, पं, फं, बं गूंजती रहती हैं। मणिपुर चक्र समान वायु का स्थान है। समान वायु का कार्य पाचन संस्थान द्वारा उत्पन्न रक्त एवं रसादि को पूरे शरीर के अंग-अंगं में समान रूप से पहुंचाना है। समान वायु का स्थान शरीर में नाभि से हृदय तक मौजूद है तथा पाचनसंस्थान इसी के द्वारा नियंत्रित होता है। पाचनसंस्थान का स्वस्थ एवं खराब होना समान वायु पर निर्भर करता है। इस चक्र पर ध्यान करने से साधक को अपने शरीर का भौतिक ज्ञान होता है। इससे व्यक्ति की भावनाएं शांत होती हैं।मणिपुर चक्र ऊर्जा शक्ति व गर्मी से सम्बंधित होता है। यह चक्र नाभि के पास स्थित होता है। इस चक्र का जागरण जिस व्यक्ति के अन्दर होता है, वह अपने जीवन में निरंतर शक्ति व आविष्कार की तलाश में रहता है। ऐसे लोगों में अधिकार करने की भावना रहती है। ऐसे व्यक्ति दूसरों पर शासन करने में खुशी का अनुभव करते हैं। जिन लोगों में इस चक्र की शक्ति कम होती है, उनका स्वभाव बिल्कुल उल्टा होता है।

4. अनाहत चक्र (Anahata Chakra) : – स्थान: हृदय क्षेत्र में, छाती के बीच में। – तत्व: वायु। – रंग: हरा। – मूल मंत्र: “यम”अनाहत चक्र हृदय के पास स्थित होता है। इस चक्र में श्वेत रंग का कमल होता है जिसमें 12 पंखुड़ियां होती हैं। इस स्थान पर 12 नाड़ियां आपस में मिलकर 12 पंखुड़ियों वाले कमल के फूल की आकृति बनाती हैं। अनाहत चक्र में 12 ध्वनियां निकलती हैं जो कं, खं, गं, धं, डं, चं, छं, जं, झं, ञं, टं, ठं होती है। यह चक्र प्राणवायु का स्थान है तथा यहीं से वायु नासिका द्वारा अन्दर व बाहर होती रहती है। प्राणवायु शरीर की मुख्य क्रिया का सम्पदन करता है जैसे- वायु को सभी अंगों में पहुंचाना, अन्न-जल को पचाना, उसका रस बनाकर सभी अंगों में प्रवाहित करना, वीर्य बनाना, पसीने व मूत्र के द्वारा पानी को बाहर निकालना आदि।यह चक्र हृदय समेत नाक के ऊपरी भाग में मौजूद है तथा ऊपर की इन्द्रियों का काम उसी के द्वारा सम्पन्न होता है। इस चक्र में वायु तत्व की प्रधानता है। प्राणवायु जीवन देने वाले सांस है। प्राण सम्पूर्ण शरीर में प्रसारित होकर शरीर को ओषजन (ऑक्सीजन) वायु एवं जीवनी शक्ति देता है। अनाहत चक्र पर ध्यान करने से मनुष्य, समाज और स्वयं के वातावरण में सुसंगति एवं संतुलन की स्थापना करता है। अनाहत चक्र पर ध्यान करने से मनुष्यों को सभी शास्त्रों का ज्ञान होता है तथा वाक् पटु, संसार के जन्म-मरण के विषय में ज्ञान होता है, ऐसे मनुष्य ज्ञानियों में श्रेष्ठ, निपुण योगी तथा अनेक गुणों से युक्त होते हैं।

5. विशुद्ध चक्र (Vishuddha Chakra) : – स्थान: गले के क्षेत्र में, कंठ के पास। – तत्व: आकाश। – रंग: नीला। – मूल मंत्र: “हम”यह चक्र कंठ में स्थित होता है जिसका रंग भूरा होता है और इसे विशुद्ध चक्र कहते हैं। यहां 16 पंखुड़ियों वाले कमल का अनुभव होता है क्योंकि यहां 16 नाड़ियां आपस में मिलती हैं तथा इनके मिलने से ही कमल के फूल की आकृति बनती है। इस चक्र में ´अ´ से ´अ:´ तक 16 ध्वनियां निकलती रहती हैं। इस चक्र का ध्यान करने से दिव्य दृष्टि, दिव्य ज्ञान तथा समाज के लिए कल्याणकारी भावना पैदा होती है। इस चक्र का ध्यान करने पर मनुष्य के रोग, दोष, भय, चिंता, शोक आदि दूर होते हैं और वह लम्बी आयु को प्राप्त करता है। यह चक्र शरीर निर्माण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह चक्र आकाश तत्व प्रधान है और शरीर जिन 5 तत्वों से मिलकर बनता है, उसमें एक तत्व आकाश भी होता है। आकाश तत्व शून्य है तथा इसमें अणु का कोई समावेश नहीं है। मानव जीवन में प्राणशक्ति को बढ़ाने के लिए आकाश तत्व का अधिक महत्व है। यह तत्व मस्तिष्क के लिए आवश्यक है और इसका नाम विशुद्ध रखने का कारण यह है कि इस तत्व पर मन को एकाग्र करने से मन आकाश तत्व के समान शून्य और शुद्ध हो जाता है।इस चक्र का सम्बंध मस्तिष्क से होता है। जिस व्यक्ति में इस चक्र का जागरण होता है, वह किसी भी संसारिक क्रिया को आलोचनात्मक या हीन नज़रिये से देखता है। ऐसे व्यक्ति हर बातों में बहस करने तथा दूसरों को परेशान करने में अपनी महानता समझते हैं।

6. आज्ञा चक्र (Ajna Chakra) : – स्थान: माथे के बीच में, भौहों के बीच (तीसरी आंख का स्थान)। – तत्व: प्रकाश। – रंग: जामुनी। – मूल मंत्र: “ओम” या “शाम”आज्ञा चक्र दोनों भौंहों के बीच स्थित होता है। इस चक्र में 2 पंखुड़ियों वाले कमल का अनुभव होता है, इसका रंग सुनहरा होता है। इस चक्र में 2 नाड़ियां मिलकर 2 पंखुड़ियों वाले कमल की आकृति बनाती हैं। यहां 2 ध्वनियां निकलती रहती हैं। यूरोपीय वैज्ञानिकों के अनुसार इस स्थान पर पिनियल और पिट्यूटरी 2 ग्रंथियां मिलती हैं। योगशास्त्र में इस स्थान का विशेष महत्व है। इस चक्र पर ध्यान करने से सम्प्रज्ञात समाधि की योग्यता आती है। मूलाधार से ´इड़ा´, ´पिंगला´ और सुषुम्ना अलग-अलग प्रवाहित होती हुई इसी स्थान पर मिलती हैं। इसलिए योग में इस चक्र को त्रिवेणी भी कहा गया है। योग ग्रंथ में इसके बारे में कहा गया है-इड़ा भागीरथी गंगा पिंगला यमुना नदी।तर्योमध्यगत नाड़ी सुषुम्णाख्या सरस्वती।।अर्थात ´इड़ा´ नाड़ी को गंगा और ´पिंगला´ नाड़ी को यमुना और इन दोनों नाड़ियों के बीच बहने वाली सुषुम्ना नाड़ी को सरस्वती कहते हैं। इन तीनों नाड़ियों का जहां मिलन होता है, उसे त्रिवेणी कहते हैं। जो मनुष्य अपने मन के इन चक्रों पर ध्यान करता है, उसके सभी पाप नष्ट होते हैं।आज्ञा चक्र मन और बुद्धि का मिलन स्थान है। यह ऊर्ध्व शीर्ष बिन्दु ही मन का स्थान है। सुषुम्ना मार्ग से आती हुई कुण्डलिनी शक्ति का अनुभव योगी को यहीं आज्ञा चक्र में होता है। योगाभ्यास व गुरू की सहायता से साधक कुण्डलिनी शक्ति को आज्ञा चक्र में प्रवेश कराता है और फिर वह कुण्डलिनी शक्ति को सहस्त्रार चक्र में विलीन कराकर दिव्य ज्ञान व परमात्मा तत्व को प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त करता है।आज्ञा चक्र दोनों भौंहों के बीच स्थित होता है तथा इस पर ध्यान करने से दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है। इस चक्र का सम्बंध जीवन को नियंत्रित करने से है।

7. सहस्रार चक्र (Sahasrara Chakra) : – स्थान: सिर के शीर्ष पर, ताज के क्षेत्र में। – तत्व: शुद्ध चेतना। – रंग: बैंगनी या सफेद। – मूल मंत्र: “ॐ”सहस्त्रार चक्र ब्रह्मन्ध्र से ऊपर मस्तिष्क में स्थित सभी शक्तियों का केन्द्र है। इस चक्र का रंग अनेक प्रकार के इन्द्रधनुष के समान होता हैं तथा इसमें अनेक पंखुड़ियों वाले कमल का अनुभव होता है। इस चक्र में ´अ´ से ´क्ष´ तक की सभी स्वर और वर्ण ध्वनि उत्पन्न होती रहती है। यह कमल अधोखुला होता हैं तथा यह अधोमुख आनन्द का केन्द्र होता है। साधक अपनी साधना की शुरुआत मूलाधार चक्र से करके सहस्त्रार चक्र में उसका अंत करता है। इस स्थान पर प्राण तथा मन के स्थिर हो जाने पर सभी शक्तियां एकत्र होकर असम्प्रज्ञात समाधि की योग्यता प्राप्त होती है। सहस्त्रार चक्र में ध्यान करने से उस चक्र में प्राण और मन स्थिर होते हैं।सहस्त्र चक्र मस्तिष्क में स्थित होता है और जो लोग इस चक्र का जागरण करने में सफलता प्राप्त कर लेते हैं, वे जीवन मृत्यु पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते हैं। सभी लोगों में अंतिम 2 चक्र सोई हुई अवस्था में रहते हैं। अत: इस चक्र का जागरण सभी लोगों के वश में नहीं होता। इस चक्र का जागरण करने में कठिन साधना व लम्बे समय तक अभ्यास की आवश्यकता होती है। योग गुरुओं के अनुसार इस चक्र का जागरण आम जीवन व्यतीत करने वाले व्यक्ति को जबरदस्ती नहीं करना चाहिए। इस चक्र का केवल ध्यान करना चाहिए और स्वास्थ्य तथा सुखमय जीवन व्यतीत करना चाहिए और यही आज के मानव जीवन के लिए योग और विज्ञान की कामना है।

इन 7 चक्रों का संतुलन और सक्रियता व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। योग, ध्यान, और प्राणायाम के माध्यम से इन चक्रों को संतुलित और सक्रिय किया जा सकता है।

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