न्यूज डेस्क छत्तीसगढ़: हनुमान जी को साहस, शक्ति, स्वामि भक्त तथा निस्वार्थ सेवा के लिए जाना जाता है। पुराणों के अनुसार भगवान हनुमान जी को शिव जी का रुद्रावतार माना जाता है। शिव पुराण के अनुसार हनुमान जी ही शिवजी के ग्यारहवें अवतार हैं।
हनुमान जी के जन्मस्थान का रहस्य : – शास्त्रानुसार हनुमानजी की माता का नाम अंजना था, जो अपने पूर्व जन्म में एक अप्सरा थीं, अंजना ब्रह्मा लोक की एक अप्सरा थी, उन्हें एक ऋषि ने बंदरिया बनने का श्राप दिया था, श्राप अनुसार जिस दिन अंजना को किसी से प्रेम हो जाएगा, उसी क्षण वह बंदरिया बन जाएगी तथा उनका पुत्र लेकिन उसका पुत्र भगवान शिव का रूप होगा,अंजना अपनी अपनी युवा अवस्था में केसरी से प्रेम करने लगी, जिससे वह वानर बन गई तथा उनका विवाह वानर राज केसरी से हुआ।माता-पिता के कारण हनुमानजी को आंजनेय और केसरीनंदन कहा जाता है । केसरीजी को कपिराज कहा जाता था, क्योंकि वे वानरों की कपि नाम की जाति से थे, केसरीजी कपि क्षेत्र के राजा थे,कपिस्थल कुरु साम्राज्य का एक प्रमुख भाग था,यह कैथल ही पहले कपिस्थल था।
हनुमान के द्वारा सूर्य को फल समझना : – एक दिन हनुमान जी की माता फल लाने के लिये इन्हें आश्रम में छोड़कर चली गईं। जब शिशु हनुमान को भूख लगी तो वे उगते हुये सूर्य को फल समझकर उसे पकड़ने के लिये आकाश में उड़ने लगे। उनकी सहायता के लिये पवन भी बहुत तेजी से चला। उधर भगवान सूर्य ने उन्हें अबोध शिशु समझकर अपने तेज से नहीं जलने दिया।जिस समय हनुमान सूर्य को पकड़ने के लिये लपके, उसी समय राहु सूर्य पर ग्रहण लगाना चाहता था। हनुमानजी ने सूर्य के ऊपरी भाग में जब राहु का स्पर्श किया तो वह भयभीत होकर वहाँ से भाग गया। उसने इन्द्र के पास जाकर शिकायत की कि देवराज! आपने मुझे अपनी क्षुधा शान्त करने के साधन के रूप में सूर्य और चन्द्र दिये थे। आज जब अमावस्या के दिन मैं सूर्य को ग्रस्त करने के लिये गया तो मैंने देखा कि एक दूसरा राहु सूर्य को पकड़ने जा रहा है।राहु की बात सुनकर इन्द्र घबरा गये और राहु को साथ लेकर सूर्य की ओर चल पड़े। राहु को देखकर हनुमान जी सूर्य को छोड़कर राहु पर झपटे, राहु ने इन्द्र को रक्षा के लिये पुकारा तो उन्होंने हनुमान जी पर वज्र का प्रहार किया जिससे वे एक पर्वत पर जा गिरे और उनकी बायीं ठुड्डी टूट गई। हनुमान की यह दशा देखकर वायुदेव को क्रोध आया। उन्होंने उसी क्षण अपनी गति रोक ली, इससे कोई भी प्राणी साँस न ले सका और सब पीड़ा से तड़पने लगे,तब सारे सुर, असुर, यक्ष, किन्नर आदि ब्रह्मा जी की शरण में गये, ब्रह्मा उन सबको लेकर वायुदेव के पास गये।वे मूर्छत हनुमान को गोद में लिये उदास बैठे थे, जब ब्रह्मा जी ने उन्हें जीवित कर दिया तो वायुदेव ने अपनी गति का संचार करके सब प्राणियों की पीड़ा दूर की, फिर ब्रह्माजी ने कहा कि कोई भी शस्त्र इनके अंग को छेद नहीं कर सकता, इन्द्र ने कहा कि इसका शरीर वज्र से भी कठोर होगा। सूर्यदेव ने कहा कि मैं इसे अपने तेज का शतांश प्रदान करता हूँ, साथ ही शास्त्र मर्मज्ञ होने का भी आशीर्वाद दिया।वरुण ने कहा मेरे पाश और जल से यह बालक सदा सुरक्षित रहेगा। यमदेव ने अवध्य और नीरोग रहने का आशीर्वाद दिया, यक्षराज कुबेर, विश्वकर्मा आदि देवों ने भी अमोघ वरदान दिये।
बजरंगबली कैसे बने पंचमुखी हनुमान :- जब राम और रावण की सेना के मध्य भयंकर युद्ध चल रहा था और रावण अपने पराजय के समीप था तब इस समस्या से उबरने के लिए उसने अपने मायावी भाई अहिरावन को याद किया जो मां भवानी का परम भक्त होने के साथ साथ तंत्र मंत्र का का बड़ा ज्ञाता था। उसने अपने माया के दम पर भगवान राम की सारी सेना को निद्रा में डाल दिया तथा राम एव लक्ष्मण का अपरहण कर उनकी देने उन्हें पाताल लोक ले गया।कुछ घंटे बाद जब माया का प्रभाव कम हुआ तब विभिषण ने यह पहचान लिया कि यह कार्य अहिरावन का है और उसने हनुमानजी को श्री राम और लक्ष्मण सहायता करने के लिए पाताल लोक जाने को कहा। पाताल लोक के द्वार पर उन्हें उनका पुत्र मकरध्वज मिला और युद्ध में उसे हराने के बाद बंधक श्री राम और लक्ष्मण से मिले। वहां पांच दीपक उन्हें पांच जगह पर पांच दिशाओं में मिले जिसे अहिरावण ने मां भवानी के लिए जलाए थे।’इन पांचों दीपक को एक साथ बुझाने पर अहिरावन का वध हो जाएगा इसी कारण हनुमान जी ने पंचमुखी रूप धरा, उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की तरफ हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख, इस रूप को धरकर उन्होंने वे पांचों दीप बुझाए तथा अहिरावण का वध कर राम,लक्ष्मण को उस से मुक्त किया।
हनुमान का नामकरण :- इन्द्र के वज्र से हनुमानजी की ठुड्डी (संस्कृत मे हनु) टूट गई थी, इसलिय हनुमान का नाम पड़ा।