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गायत्री मंदिर में कलश स्थापना के साथ चैत्र नवरात्र प्रारंभ,पूरे विधि-विधान एवं वैदिक मंत्रोचार के साथ हुआ शुरू

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तिल्दा नेवरा: गायत्री मंदिर में कलश स्थापना के साथ चैत्र नवरात्र प्रारंभ,पूरे विधि-विधान एवं वैदिक मंत्रोचार के साथ हुआ शुरू

हिरमी – रावन : शक्ति व उपासना का महापर्व चैत्र नवरात्र मंगलवार को कलश स्थापना के साथ पूरे विधि-विधान एवं वैदिक मंत्रोचार के साथ शुरू हुआ। नवरात्र का महाअनुष्ठान शुरू होते ही सभी देवी मंदिर शीतला मंदिर में श्लोक या देवी सर्वभूतेषू शक्तिरूपेण संस्थिता .. से गूंज उठा। हिरमी स्थित महामाया एवं गायत्री प्रज्ञापीठ आदि विभिन्न देवी मंदिरों में माता की विशेष पूजा-अर्चना की जा रही है। मंगलवार को श्रद्धालुओं ने माता के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की आराधना व पूजा-अर्चना की। इसके पहले पूरे विधि-विधान एवं वैदिक मंत्राचार के साथ सभी देवी स्थानों में कलश स्थापना व देवी का आह्वान एवं मंगल आरती की गई। घंटा, मृदंग, करतल ध्वनि के साथ मां अंबे की विशेष पूजा-अर्चना व आरती की गई। गायत्री प्रज्ञापीठ पर वैदिक मंत्रो से धार्मिक अनुष्ठान शुरू किए गए। प्रज्ञा पीठ हिरमी के पुजारी श्यामसुंदर जी ने बताया कि नवरात्र को लेकर मंदिर परिसर में कलश स्थापना के साथ आठ दिवसीय महाअनुष्ठान शुरू किया गया है। साथ ही मंदिर को आकर्षक ढ़ंग से व सतरंगी लाइट से सजाया गया है। नवरात्र के दूसरे दिन यानी बुधवार को माता के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी की आराधना व पूजा-अर्चना की जाएगी।

कई पंडितों ने माता के दूसरे स्वरूप देवी ब्रह्मचारिणी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि सचिदानंदमय ब्रह्म स्वरूप की प्राप्ति करना जिनका स्वभाव हो, वे माता ब्रह्मचारिणी है। यह देवी अपने दाएं हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल लिए रहती है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार एवं संयम की वृद्धि होती है। पंडितों ने आज का विशेष भोग शक्कर और उससे बने पदार्थ बताया है। इनकी आराधना से श्रद्धालु दीर्घायु होते है। गायत्री प्रज्ञा पीठ परिसर में गायत्री परिवार के तत्वावधान में आठ दिवसीय अनुष्ठान सामूहिक कलश स्थापना एवं सामूहिक संकल्प के साथ किया गया।

इस मौके पर गायत्री परिवार के ने अनुष्ठान के महत्व एवं उपयोग पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इस पुजारी आध्यात्मिक अनुष्ठान किया जाता है। महाअनुष्ठान में जप और तप का योग है। नियम और संयम अनुष्ठान का प्राण है। नियम स संयम साधने पर ही साधना से अभिष्ट की प्राप्ति होती है। अनुष्ठान साधना से सभी मनोकामनाएं की पूर्ति होती है।

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